Parwarish

परवरिश                                                                                                                                                       दोस्तों ,  वैसे तो हम सब जानते है की जब माँ संतान को जन्म देती है  तो उसकी एक ज़िम्मेदारी शुरु हो जाती है- अपने बच्चे की परवरिश की । परन्तु , बच्चे की परवरिश  वास्तव मे माँ के गर्भ  में  ही प्रारम्भ हो जाती है। अगर माँ चाहे तो अपने मन मे सदा अपने बच्चे के प्रति अच्छे विचार रखे, हमेशा अच्छा सोचे,  तो बच्चा गर्भ से ही संस्कारी होता है । ये महाभारत में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के बारे में भी कहा जाता है । वो अपनी माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह की संरचना को समझ कर उसमे प्रवेश करने का मार्ग जान गए थे,परंतु उससे निकलने के  रास्ते  की जानकारी जब उनके पिता अर्जुन बतला रहे थे तभी उनकी माँ सुभद्रा को नींद आ गई  और अभिमन्यु  पूरी बात सुन न सके । इसी कारण वो चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाये । इससे दो बातें सामने आती है- एक तो ये कि गर्भ में बच्चे सुनते और समझते हैं ,दूसरा ये कि गर्भ में पल रहे बच्चे माँ की जाग्रत अवस्था में  कि गई बातों  को याद रखता है । तो दोस्तों इससे स्पष्ट होता है कि  बच्चे की परवरिश गर्भ में ही  शुरू  हो जाती है । उसके बाद आता है बाल्यावस्था । इस अवस्था में वास्तव में बच्चा एक फूल के समान  ही होता है या कह लिजिये फूल की कली ।अब यहीँ  से आप का दायित्व शुरु होता है कि कली से फूल  कैसा  खिलाया जाए । अभी बच्चा जो कुछ भी करता है, वह बिल्कुल बेफिक्र होकर करता है । उसे कुछ भी ज्ञात नहीं होता की वो जो कर रहा है  उसका क्या परिणाम होगा । बस, आप उसे सही और गलत की पहचान करवाती  जाएँ और साथ में करती जाएँ ।  बच्चा आप को जो करते देखेगा वह वही काम करेगा  और धीरे-धीरे उसे  सही गलत की समझ हो  जाएगी । बच्चे  हर काम देखकर सीखते है । आप अपने बच्चे से जो उम्मीद करते है वो आपको भी करना होगा। आप यदि सब का सम्मान करेंगे, झूट नहीं बोलेंगे, हर काम समय से करेंगे, तो वो भी वही करेंगे । आप यदि आपने आप को अनुशासित करेंगे  तो बच्चे भी अनुशासन प्रिय होगें । उन्हें हर काम बचपन से ही सिखाएं । वो बड़े मजे से सीखेंगे। उनके पढ़ने,खेलने,सोने सब का समय निर्धारित करें। पढ़ने के समय हमेशा  उनके साथ  रहें, उनका बैग चेक करें  । पूछे क्या पढ़ा? क्या होमवर्क है ?उसे करवाएं।उससे  फ्री टाइम में बात-चीत करें और जानें उसका दोस्त कौन है ,वो किसके साथ रहता है । हमेशा दोस्तों के तरह पेश आयेंगी तो वो आप को अपने सबसे करीब समझेगा । अपनी बात खुल कर कहेगा ।उसकी भी बातें सुनें और अच्छी लगे तो उसे अपनाएँ और उसके किये हुए अच्छे कामों की तारीफ करें।  अगर कहीँ कुछ गलत समझ में आये तो आप उसे आसानी से मना कर सकती हैं।  वो आप पर भरोसा करेगा और आप की बातो को समझेगा । आप का साथ उसे सिर्फ सही रास्ते पर ले जायेगा । बच्चा ज्यों-ज्यों बड़ा होता है उसके मन में  बहुत सारे प्रश्न होते है खुद के बारे में, दूसरों के बारे में । उस वक़्त उसे सिर्फ आप ही बिना हिचके सब कुछ बतला सकती हैं,  एक सच्चे साथी की तरह । क्योंकि इन सब दौर से आप गुजर चुकीं  है । आप अपने अनुभव से उन्हें सब जानकारी दे सकती हैं  । फिर देखिये आप का बच्चा जहाँ से गुजरेगा क्या बटोर लाता है । जो देखेगा सोचेगा काश!मेरा बच्चा भी ऐसा होता ।फिर आपके बच्चे आपका सौभाग्य होगें । यही है सही परवरिश । दोस्तों ,ये तो मेरा अनुभव  हैं जो मैं आपके साथ बाँट रही हूँ । उम्मीद  है की मेरा यह अनुभव आपके बच्चों की परवरिश में आपके काम आएगा ।   

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