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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के, शिवमंगल सिंह सुमन

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   हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के   कवि :-  शिवमंगल सिंह सुमन  हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाऍंगे।  शिवमंगल सिंह सुमन  हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक-कटोरी की मैदा से, स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरु की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील नभ की सीमा पाने, लाल किरण-सी चोंचखोल चुगते तारक-अनार के दाने। होती सीमाहीन क्षितिज से इन पंखों की होड़ा-होड़ी, या तो क्षितिज मिलन बन जाता या तनती साँसों की डोरी। नीड़ न दो, चाहे टहनी का आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं, तो आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।  

कलम, आज उनकी जय बोल, Sri Ramdhari Singh Dinkar

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    कलम, आज उनकी जय बोल श्री रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविता   कलम, आज उनकी जय बोल जला अस्थियाँ बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल कलम, आज उनकी जय बोल। जो अगणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे, जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल कलम, आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएँ उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल कलम, आज उनकी जय बोल | 🙏