श्री ब्रह्म संहिता | आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्।

श्री ब्रह्म संहिता आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥ Hare Krishna आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥ जिनके गले में चंद्रक से शोभित वनमाला झूम रही है, जिनके दोनों हाथ वंशी तथा रत्न - जड़ित बाजूबन्दों से सुशोभित हैं, जो सदैव प्रेम- लीलाओं में मग्न रहते हैं, जिनका ललित त्रिभंग श्यामसुंदर रूप नित्य प्रकाशमान है, उन आदिपुरुष भगवान गोविंद का में भजन करती हूँ। Hare Krishna आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥ जिनके गले में चंद्रक से शोभित वनमाला झूम रही है, जिनके दोनों हाथ वंशी तथा रत्न - जड़ित बाजूबन्दों से सुशोभित हैं, जो सदैव प्रेम- लीलाओं में मग्न रहते हैं, जिनका ललित त्रिभंग श्यामसुंदर रूप नित्य प्रकाशमान है, उन आदिपुरुष भगवान गोविंद का में भजन करती हूँ। Hare Krishna आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल...