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श्री ब्रह्म संहिता | आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्।

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श्री ब्रह्म संहिता आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥     Hare Krishna    आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥   जिनके गले में चंद्रक से शोभित वनमाला झूम रही है, जिनके दोनों हाथ वंशी तथा रत्न - जड़ित बाजूबन्दों से सुशोभित हैं, जो सदैव प्रेम- लीलाओं में मग्न रहते हैं, जिनका ललित त्रिभंग श्यामसुंदर रूप नित्य प्रकाशमान है, उन आदिपुरुष भगवान गोविंद का में भजन करती हूँ।   Hare Krishna आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी, रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्। श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं, गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥   जिनके गले में चंद्रक से शोभित वनमाला झूम रही है, जिनके दोनों हाथ वंशी तथा रत्न - जड़ित बाजूबन्दों से सुशोभित हैं, जो सदैव प्रेम- लीलाओं में मग्न रहते हैं, जिनका ललित त्रिभंग श्यामसुंदर रूप नित्य प्रकाशमान है, उन आदिपुरुष भगवान गोविंद का में भजन करती हूँ। Hare Krishna आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल...

Narasimha Aarti |नृसिंह आरती | ISKCON | Narsimha bhagwaan ka abhishekh

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  Narasimha Aarti  नृसिंह आरती   नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद-दायिने हिरण्यकशिपोर्वक्षः- शिला-टङ्क-नखालये मैं भगवान नरसिंह को प्रणाम करता हूँ जो प्रह्लाद महाराजा को आनंद देते हैं और जिनके नाखून राक्षस हिरण्यकशिपु की पत्थर जैसी छाती पर छेनी की तरह हैं। इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो यतो यतो यामि ततो नृसिंहः बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये भगवान नृसिंह यहां भी हैं और वहां भी हैं।  मैं जहां भी जाता हूं भगवान नृसिंह वहीं होते हैं।  वह हृदय में भी है और बाहर भी है।  मैं भगवान नृसिंह, सभी चीजों की उत्पत्ति और सर्वोच्च शरण के लिए आत्मसमर्पण करता हूं।   जयदेव  गोस्वामी द्वारा भगवान नृसिंह की प्रार्थना तव करकमलवरे नखमद्भुत-शृङ्गं दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे । हे केशव!  हे ब्रह्मांड के स्वामी!  हे भगवान हरि, जिन्होंने आधे आदमी, आधे शेर का रूप धारण किया है! आपकी  जय हो !  जिस प्रकार कोई अपने नाखूनों के बीच एक ततैया को आसानी से कुचल सकता है, उसी तरह आपके सुंदर  कमल के हाथों के अद्भुत न...

गया धाम की महिमा | पितृपक्ष | गयासुर की कहानी | पिंडदान गया में क्यों ?

  जय श्री गणेश  गया धाम की महिमा   पितृपक्ष  पिंडदान गया में क्यों ? पितृ का तर्पण   गयासुर की कहानी   पितृपक्ष  गया धाम की महिमा पितृ तर्पण    पिंडदान गया में क्यों ?  नारद मुनि ने सनत कुमारों से गया धाम के बारे में जानने की जिज्ञासा की तो सनत कुमार ने बतलाया की ब्रह्माजी जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे, जीव की उत्पत्ति कर रहे थे, उसी दौरान ब्रह्माजी ने एक असुर को प्रकट कर दिया | | उस असुर का नाम गयासुर था |     गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |   गयासुर  जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा |  इंद्र देवता  को  तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए |...