गया धाम की महिमा | पितृपक्ष | गयासुर की कहानी | पिंडदान गया में क्यों ?

  जय श्री गणेश 

गया धाम की महिमा  

पितृपक्ष 

पिंडदान गया में क्यों ?

पितृ का तर्पण 


 गयासुर की कहानी  

पितृपक्ष 

गया धाम की महिमा

पितृ तर्पण   

पिंडदान गया में क्यों ? 




नारद मुनि ने सनत कुमारों से गया धाम के बारे में जानने की जिज्ञासा की तो सनत कुमार ने बतलाया की ब्रह्माजी जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे, जीव की उत्पत्ति कर रहे थे, उसी दौरान ब्रह्माजी ने एक असुर को प्रकट कर दिया | | उस असुर का नाम गयासुर था | 

 

 गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |

 

गयासुर जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा | 

इंद्र देवता को तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए | 


शिवजी ने कहा ये काम करने के लिए मैं सक्षम नहीं हूँ! मुझे कहो तो पूरी सृष्टि को समाप्त कर दूँ | ये काम भगवान् विष्णु का है | 


सभी भगवान् के पास चल दिए | सबने भगवान् से निवेदन किया की प्रभु ये असुर तो घोर तपस्या में जुटा है | इसकी तपस्या पूरी हो गयी तो हम सबको तबाह करेगा | भगवान बोले आपसब चलो मैं आता हूँ | भगवान् ने देखा गयासुर की तपस्या बहुत प्रबल थी | उन्होंने असुर से कहा - तुम्हारी तपस्या सफल हुई| मैं तुमसे प्रसन्न हूँ | तुम्हारी क्या इच्छा है? मांगो तुम्हे क्या चाहिए | 



गयासुर ने कहा मुझे ऐसा वरदान दे दो की मैं जिसको भी स्पर्श करूँ या फिर कोई भी जीव, जंतु, मनुष्य, गंदर्भ, किन्नर, किसी भी योनि का जीव मुझे स्पर्श करे तो वो परम पवित्र हो जाय और मोक्ष को प्राप्त करे | सभी देवता भगवान की और मुखातिब थे की वो क्या कहते है | भगवान् ने सबको देखा और कहा तथास्तु | 


अब तो असुर के हाथो में क्षमता थी मोक्ष देने की | गलत आदमी के हाथो में अधिकार आने का परिणाम क्या होता है देखिये | 

 
उसने जितने असुर थे पापी, हिंसक, मांसाहारी, मदिरापान करने वालों के पास जाकर - जाकर स्पर्श करता था | भगवान् का आशीर्वाद था | ये उन सबको पवित्र करने लगा | ऐसा करते करते उसने सभी पापियों का उद्धार करना शुरू कर दिया |  

अब प्रकृति का सिद्धांत बदलने लगा था पापी पवित्र हो रहे थे और मोक्ष को प्राप्त कर रहे थे |  

यमराज जी का नरक सुना हो गया | यमराज इंद्र के पास पहुंचे | इंद्र का ही सब किया धरा था | किन्तु इंद्र सिर्फ रोधोकर अपनी गद्दी सुरक्षित रखते है | 


फिर से सब ब्रह्मा जी को लेकर भगवान् के पास पहुंचे | भगवान् ने कहा अब मैंने इसे वरदान दे दिया है तो अब क्या करूँ | उनको एक उपाय सुझा | उन्होंने कहा आपसब उसके पास जाओ और असुर से कहो - हमें यज्ञ करना है, उसके लिए एक पवित्र स्थान चाहिए | हे गयासुर! इस दुनिया में कहीं पवित्र स्थान है नहीं ! तो तुम सो जाओ हम तुम्हारे शरीर पर यज्ञ कर लेते है | तुम तो सबका उद्धार कर रहे हो हमारा भी उद्धार कर दो | 


असुर तैयार हो गया, बोला - ठीक है | ये वरदान मुझे आपलोगों के कारण ही मिला है | आपलोग यज्ञ करलो| लेकिन जल्दी करना | देवताओं ने कहा ठीक है हम जल्दी ही यज्ञ सम्पन्न कर लेंगे | 


राम एक चरित्र एक पात्र 


गयासुर सो गया | ब्रह्मा जी ने यज्ञ शुरू किया | असुर सब जगह घूम - घूमकर स्पर्श करता था | अनाधिकारी को मुक्ति देता था | तो उसे एक जगह स्थिर करना जरुरी था | भगवान् ने सभी देवताओं को उसके शरीर पर बैठने को कहा ताकि वो असुर खड़ा ही न हो पाए |

 ३३ करोड़ देवी - देवता उसके शरीर पर बैठ गए | यज्ञ समाप्त होते ही असुर हिला | देवताओ को डर लग गया कि ये तो अभी भी खड़ा हो सकता है | कुछ देवता भागे भगवान् के पास - ये तो अभी भी  हिल रहा है, खड़ा हो सकता है |


तब भगवान ने अपने शरीर से एक स्वयं का विग्रह निकाल कर दिया| वो विग्रह गदाधारी विष्णु का था| भगवान ने कहा इसे भी आप सबके साथ उसपर बिठा देना |  


  तब जाके उसका हिलना बंद हुआ | जब हिलना बंद हो गया तो उसने चिल्लाना शुरू किया - यज्ञ समाप्त हो चुका है! अब तो आप लोग हटो |  


Gau mata



तब भगवान ने कहा -- देखो तुमने बहुत अच्छा काम किया है | तुम्हारे कारण देवताओ का यज्ञ एक पवित्र स्थान पर संपन्न हुआ । तुम जो मांगना चाहते हो मांगो | 

अब  गयासुर  का स्पर्श भगवान् से हो गया था | उसका हृदय परिवर्तन हो गया था | उसने कहा मुझे पांच वर चाहिए | 


१. जब तक सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी इस ब्रह्माण्ड में है तब तक आप सब लोग मेरे ऊपर विराजमान रहोगे | 


पितृपक्ष में क्या करना चाहिए



२. ये स्थान आगे चलकर तीर्थ बनेगा और तीर्थ का नाम मेरे नाम से  प्रसिद्ध होना चाहिए |


३. यहां जो भी स्नान, तर्पण, दान, पुण्य करेगा उसे  भारत के सारे तीर्थों का फल प्राप्त होगा | 


४. गदाधर भगवान् के दर्शन पूजन से तो उनके हज़ारों कुल तड़ जाएंगे |


५ . यहां जो अपने पित्तरों के लिए पिंड दान करेगा वो सीधा वैकुण्ठ धाम को चला जायेगा | 


भगवान् ने कहा - तथास्तु 


वह स्थान आगे चलके गयासुर के नाम पर गया नाम से प्रसिद्ध हुआ । गयासुर को मिले इन पांच वरदानों के कारण ही गया में पिंड दान किया जाता है । 


जो एक बार वैकुण्ठ धाम चला जाता है उसे बार - बार जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है |


राधे - राधे |

ॐ नमः शिवाय 

जय जय श्री राधे  


 गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |

 

वो जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा | 

इंद्र देवता की तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए | 


शिवजी ने कहा ये काम करने के लिए मैं सक्षम नहीं हूँ मुझे कहो तो पूरी सृष्टि को समाप्त कर दूँ | ये काम भगवान् विष्णु का है | 


सभी भगवान् के पास चल दिए | सबने भगवान् से निवेदन किया की प्रभु ये असुर तो घोर तपस्या में जुटा है | इसकी तपस्या पूरी हो गयी तो हम सबको तबाह करेगा | भगवान बोले आपसब चलो मैं आता हूँ | भगवान् ने देखा गयासुर की तपस्या बहुत प्रबल थी | उन्होंने असुर से कहा तुम्हारी तपस्या सफल हुई मैं तुमसे प्रसन्न हूँ तुम्हारी क्या इच्छा है मांगो तुम्हे क्या चाहिए | 



अब प्रकीर्ति का सिद्धांत बदलने लगा था पापी पवित्र हो रहे थे और मोक्ष को प्राप्त कर रहे थे |  


फिर से सब ब्रह्मा जी को लेकर भगवान् के पास पहुंचे | भगवान् ने कहा अब मैंने इसे वरदान दे दिया है तो अब क्या करूँ | उनको एक उपाय सुझा | उन्होंने कहा आपसब उसके पास जाओ और असुर से कहो की हमें यज्ञ करना है उसके लिए एक पवित्र स्थान चाहिए | 


हे गयासुर इस दुनिया में कहीं पवित्र स्थान है नहीं तो तुम सो जाओ हम तुम्हारे शरीर पर यज्ञ कर लेते है | तुम तो सबका उद्धार कर रहे हो हमारा भी उद्धार कर दो | 


असुर तैयार हो गया बोलै ठीक है ये वरदान मुझे आपलोगों के कारण ही मिला है | आपलोग यज्ञ करलो लेकिन जल्दी करना | देवताओं ने कहा ठीक है हम जल्दी ही यज्ञ सम्पन्न कर लेंगे | 


गयासुर सो गया | ब्रह्मा जी ने यज्ञ शुरू किया | असुर सब जगह घूम - घूमकर स्पर्श करता था | अनधिकारी को मुक्ति देता था | तो उसे एक जगह स्थिर करना जरुरी था | भगवान् ने सभी देवताओं को उसके शरीर पर बैठने को कहा ताकि वो असुर खड़ा ही न हो पाए |

 ३३ करोड़ देवी - देवता उसके शरीर पर बैठ गए | यज्ञ समाप्त होते ही असुर हिला | देवताओ को डर लग गया कि ये तो अभी भी खड़ा हो सकता है | कुछ देवता भागे भगवान् के पास ये तो अभी भी  हिल रहा है खड़ा हो सकता है |


तब भगवान ने अपने शरीर से एक स्वयं का विग्रह निकाल कर दिया वो विग्रह गदाधारी विष्णु का था और कहा इसे भी आप सबके साथ उसपर बिठा देना |  


  तब जाके उसका हिलना बंद हुआ | जब हिलना बंद हो गया तो उसने चिल्लाना शुरू किया | यज्ञ समाप्त हो चूका है अब तो आपलोग हटो |  


   

 


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