गया धाम की महिमा | पितृपक्ष | गयासुर की कहानी | पिंडदान गया में क्यों ?
जय श्री गणेश
गया धाम की महिमा
पितृपक्ष
पिंडदान गया में क्यों ?
पितृ का तर्पण
गयासुर की कहानी
पितृपक्ष
गया धाम की महिमा
पितृ तर्पण
पिंडदान गया में क्यों ?
गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |
गयासुर जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा |
इंद्र देवता को तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए |
शिवजी ने कहा ये काम करने के लिए मैं सक्षम नहीं हूँ! मुझे कहो तो पूरी सृष्टि को समाप्त कर दूँ | ये काम भगवान् विष्णु का है |
सभी भगवान् के पास चल दिए | सबने भगवान् से निवेदन किया की प्रभु ये असुर तो घोर तपस्या में जुटा है | इसकी तपस्या पूरी हो गयी तो हम सबको तबाह करेगा | भगवान बोले आपसब चलो मैं आता हूँ | भगवान् ने देखा गयासुर की तपस्या बहुत प्रबल थी | उन्होंने असुर से कहा - तुम्हारी तपस्या सफल हुई| मैं तुमसे प्रसन्न हूँ | तुम्हारी क्या इच्छा है? मांगो तुम्हे क्या चाहिए |
अब प्रकृति का सिद्धांत बदलने लगा था पापी पवित्र हो रहे थे और मोक्ष को प्राप्त कर रहे थे |
यमराज जी का नरक सुना हो गया | यमराज इंद्र के पास पहुंचे | इंद्र का ही सब किया धरा था | किन्तु इंद्र सिर्फ रोधोकर अपनी गद्दी सुरक्षित रखते है |
फिर से सब ब्रह्मा जी को लेकर भगवान् के पास पहुंचे | भगवान् ने कहा अब मैंने इसे वरदान दे दिया है तो अब क्या करूँ | उनको एक उपाय सुझा | उन्होंने कहा आपसब उसके पास जाओ और असुर से कहो - हमें यज्ञ करना है, उसके लिए एक पवित्र स्थान चाहिए | हे गयासुर! इस दुनिया में कहीं पवित्र स्थान है नहीं ! तो तुम सो जाओ हम तुम्हारे शरीर पर यज्ञ कर लेते है | तुम तो सबका उद्धार कर रहे हो हमारा भी उद्धार कर दो |
असुर तैयार हो गया, बोला - ठीक है | ये वरदान मुझे आपलोगों के कारण ही मिला है | आपलोग यज्ञ करलो| लेकिन जल्दी करना | देवताओं ने कहा ठीक है हम जल्दी ही यज्ञ सम्पन्न कर लेंगे |
गयासुर सो गया | ब्रह्मा जी ने यज्ञ शुरू किया | असुर सब जगह घूम - घूमकर स्पर्श करता था | अनाधिकारी को मुक्ति देता था | तो उसे एक जगह स्थिर करना जरुरी था | भगवान् ने सभी देवताओं को उसके शरीर पर बैठने को कहा ताकि वो असुर खड़ा ही न हो पाए |
३३ करोड़ देवी - देवता उसके शरीर पर बैठ गए | यज्ञ समाप्त होते ही असुर हिला | देवताओ को डर लग गया कि ये तो अभी भी खड़ा हो सकता है | कुछ देवता भागे भगवान् के पास - ये तो अभी भी हिल रहा है, खड़ा हो सकता है |
तब भगवान ने अपने शरीर से एक स्वयं का विग्रह निकाल कर दिया| वो विग्रह गदाधारी विष्णु का था| भगवान ने कहा इसे भी आप सबके साथ उसपर बिठा देना |
तब जाके उसका हिलना बंद हुआ | जब हिलना बंद हो गया तो उसने चिल्लाना शुरू किया - यज्ञ समाप्त हो चुका है! अब तो आप लोग हटो |
अब गयासुर का स्पर्श भगवान् से हो गया था | उसका हृदय परिवर्तन हो गया था | उसने कहा मुझे पांच वर चाहिए |
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए
भगवान् ने कहा - तथास्तु ॥
वह स्थान आगे चलके गयासुर के नाम पर गया नाम से प्रसिद्ध हुआ । गयासुर को मिले इन पांच वरदानों के कारण ही गया में पिंड दान किया जाता है ।
जो एक बार वैकुण्ठ धाम चला जाता है उसे बार - बार जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है |
राधे - राधे |
ॐ नमः शिवाय
जय जय श्री राधे
गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |
वो जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा |
इंद्र देवता की तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए |
शिवजी ने कहा ये काम करने के लिए मैं सक्षम नहीं हूँ मुझे कहो तो पूरी सृष्टि को समाप्त कर दूँ | ये काम भगवान् विष्णु का है |
सभी भगवान् के पास चल दिए | सबने भगवान् से निवेदन किया की प्रभु ये असुर तो घोर तपस्या में जुटा है | इसकी तपस्या पूरी हो गयी तो हम सबको तबाह करेगा | भगवान बोले आपसब चलो मैं आता हूँ | भगवान् ने देखा गयासुर की तपस्या बहुत प्रबल थी | उन्होंने असुर से कहा तुम्हारी तपस्या सफल हुई मैं तुमसे प्रसन्न हूँ तुम्हारी क्या इच्छा है मांगो तुम्हे क्या चाहिए |
अब प्रकीर्ति का सिद्धांत बदलने लगा था पापी पवित्र हो रहे थे और मोक्ष को प्राप्त कर रहे थे |
फिर से सब ब्रह्मा जी को लेकर भगवान् के पास पहुंचे | भगवान् ने कहा अब मैंने इसे वरदान दे दिया है तो अब क्या करूँ | उनको एक उपाय सुझा | उन्होंने कहा आपसब उसके पास जाओ और असुर से कहो की हमें यज्ञ करना है उसके लिए एक पवित्र स्थान चाहिए |
हे गयासुर इस दुनिया में कहीं पवित्र स्थान है नहीं तो तुम सो जाओ हम तुम्हारे शरीर पर यज्ञ कर लेते है | तुम तो सबका उद्धार कर रहे हो हमारा भी उद्धार कर दो |
असुर तैयार हो गया बोलै ठीक है ये वरदान मुझे आपलोगों के कारण ही मिला है | आपलोग यज्ञ करलो लेकिन जल्दी करना | देवताओं ने कहा ठीक है हम जल्दी ही यज्ञ सम्पन्न कर लेंगे |
गयासुर सो गया | ब्रह्मा जी ने यज्ञ शुरू किया | असुर सब जगह घूम - घूमकर स्पर्श करता था | अनधिकारी को मुक्ति देता था | तो उसे एक जगह स्थिर करना जरुरी था | भगवान् ने सभी देवताओं को उसके शरीर पर बैठने को कहा ताकि वो असुर खड़ा ही न हो पाए |
३३ करोड़ देवी - देवता उसके शरीर पर बैठ गए | यज्ञ समाप्त होते ही असुर हिला | देवताओ को डर लग गया कि ये तो अभी भी खड़ा हो सकता है | कुछ देवता भागे भगवान् के पास ये तो अभी भी हिल रहा है खड़ा हो सकता है |
तब भगवान ने अपने शरीर से एक स्वयं का विग्रह निकाल कर दिया वो विग्रह गदाधारी विष्णु का था और कहा इसे भी आप सबके साथ उसपर बिठा देना |
तब जाके उसका हिलना बंद हुआ | जब हिलना बंद हो गया तो उसने चिल्लाना शुरू किया | यज्ञ समाप्त हो चूका है अब तो आपलोग हटो |
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