अनंत चतुर्दशी | Anant chaturdashi
जय श्री गणेश
जय जय श्री राधे
अनंत चतुर्दशी
Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी
Anant chaturdashi
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी की नाम से जाना जाता है | इस दिन अनंत के रूप में श्री हरी विष्णु की पूजा, अर्चना और कीर्तन होता है | अनंत पद्मनाभ स्वामी भगवान विष्णु का ही शेष सयन मुद्रा में प्राकट्य है | शेष रूप में बनी शैया पर निद्रा मग्न भगवान श्री विष्णु |
अनंत का मतलब जिसका कोई अंत न हो |
जो व्यक्ति अनंत चतुर्दशी को विष्णु सहस्र नाम का पाठ करता है और व्रत रखता है उसकी सारी मनोवांछित इच्छा पूरी होती है | इस का वर्णन धार्मिक ग्रन्थ महाभारत में है |
अनंत चतुर्दशी का व्रत सबसे पहले पांडवों ने श्री कृष्ण के कहने पर पूरी विधि का पालन करते हुए किया था |
पांडव श्री कृष्ण के भक्त थे | उनकी माता कुंती भगवान की भक्त थीं | पांडवों के पिता पाण्डु एक धर्मशील राजा थे | फिर भी पांडवों के जीवन में बहुत कष्ट आये | बचपन से ही दुर्योधन पांडवों को दुःख देने लगा था |
श्री कृष्ण ने पांडवों से कहा --- मैं आपलोगों को एक उपाय बतलाता हूँ वो करो |
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना करने से आपका सारा धन,संपत्ति और आपका खोया हुआ राज्य वापस मिल जायेगा |
पांडवों ने श्री कृष्ण की आज्ञा से अनंत चतुर्दशी का व्रत पूरी निष्ठां और नियमों का पालन करके किया | इस व्रत को करने से पांडवों को उनका राज्य, धन वैभव सब वापस मिल गया |
"स्थानं प्रभावं न बलं प्रभावं "
अनंत चतुर्दशी के दिन एक धागा बांधते है जिसमें १४ गाठें होती है | भगवान विष्णु को अर्पित किया जाने वाला १४ गांठों का यह रक्षासूत्र १४लोकों का प्रतिनिधित्व करता है।
7 पृथ्वी से शुरू करते हुए ऊपर और 7 नीचे।
ये हैं- भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वलोक, महालोक, जनलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक। इसी तरह नीचे वाले लोक हैं- अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल , महातल और पाताल।
इस मंत्र के साथ धागा बांधते है --
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
भगवान की आज्ञा से ये मन्त्र पढ़कर हम धागा बांधते है और भगवान से हमारी रक्षा करने का वर लेते है |
अनंत चतुर्दशी की सबों को हार्दिक शुभकामनाएं |
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
अनंत सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपाय नमोनमस्ते॥
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