पितृपक्ष | पितृपक्ष में क्या करना चाहिए | हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है | पितरों को तर्पण
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए
हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है
पितृपक्ष
पितरों को तर्पण
हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए
पितृपक्ष में क्या करने से हमारे पितरों को ख़ुशी मिलती है ?
पितृ पितृलोक से मुक्त होकर भगवान के धाम को कैसे जाते है?
पितृपक्ष में क्या करने से हमारे पितरों को ख़ुशी मिलती है और वो पितृ लोक से मुक्त होकर भगवान के धाम को जाते है? पितृपक्ष
सबका एक दिन समय आता है | अश्विन कृष्णपक्ष से आश्विन पूर्णिमा तक १५ दिन हमारे पित्तरों का दिन होता है | पित्तर हमारे पूर्वज है | उनकी बहुत कृपा है हमारे ऊपर | उन्होंने हमारी इस आत्मा को घर दिया | हमें कुल परिवार मिला | हमें माता - पिता मिले | जो हमारा भरण पोषण करते है | हमें कुल - परिवार सुख - दुःख और माता - पिता ये सब अपने पूरब जन्म के कर्मों से मिलता है |
इन दिनों में अपने पित्तरों को तृप्त करने के लिए उन्हें भगवान की कृपा से भोजन और जल अर्पित किया जाता है | उन तक इन चीजों को पहुँचाने के लिए हम भोजन को कौआ, गौ और ब्राह्मण को देते है |
कौआ पितरों के देवता अर्यमा देवता का वाहन है | इस कारण कौआ को जब हम इन पंद्रह दिनों में खाना देते है तो अर्यमा देवता तक पहुँचता है और अर्यमा देवता हमारे पित्तरों को पुरे वर्ष ये भोजन खिलाते है | ऐसा गरुड़ पुराण में वर्णन है | इस कारण हमें अपने पित्तरों को पुरे श्रद्धा से भोजन देना है ताकि वो हमेशा तृप्त रहे और हम सबको आशीर्वाद दें |
साथ ही साथ हमें उनकी आत्मा को तृप्त करने के लिए श्रीमद भगवत गीता या फिर श्रीमद भगवत पुराण सुनना या पढ़ना चाहिए | ऐसा करने से हमारे पित्तरों को बहुत जल्द भगवान का धाम मिलता है | वो पितृ लोक से मुक्त होकर भगवान के धाम को चले जाते है | उनके जीवन में ये बहुत सुख प्रदान करता है इस कारण वो झूमते है | और हमें आशीर्वाद देते है |
नारद भक्ति सूत्र ६९ -
तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि सुकर्मीकुर्वन्ति कर्माणि सच्छास्त्रीकुर्वन्ति शास्त्राणि
७० वें सूत्र -- तन्मया | पितृपक्ष
७१ वां सूत्र -- मोदन्ते पितरों | नृत्यन्ते देवता | सनाथा चेयं भुर्भवति
नारद मुनि कहते है --
भगवान का शुद्ध भक्त भगवान से प्रेम करते - करते इतना तन्मय हो जाता है, इतना पवित्र हो जाता है कि किसी साधारण स्थान को तीर्थ बना देता है, एक साधारण कर्म को भी सबसे सुन्दर कर्म बना देता है, साधारण शास्त्र को सुन्दर शास्त्र बना देता है |
पितृपक्ष
जो भक्त भगवतमय होता है जिनके मन में हरि का चिंतन स्मरण होता है वो भक्त अपने पितरों को तृप्त कर लेता है |
पितृ, पितृलोक में नाचते है और आशीर्वाद देते है | देवता नृत्य करते है और पृथ्वी अपने आपको सनाथ समझती है |
पितृपक्ष
पितृ पक्ष में हम अपने पितरों को जल तर्पण करते है खाना भी खिलाते है ये सब जरूर करना चाहिए लेकिन साथ ही साथ जो लोग तन्मय होकर हरि कथा सुनते है उनके पितृ, पितृलोक में नाचते है और आशीर्वाद देते है | देवता नृत्य करते है और पृथ्वी अपने आपको सनाथ समझती है |
भगवत कथा सुनने से हमारे पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है | वो पितृलोक से मुक्त होकर गौलोक भगवान के धाम में चले जाते है |
हमें अपने पितरों को भगवान के धाम पहुंचाने के लिए भगवान का चिंतन मनन करना चाहिए | हमारे पितृ गौलोक जायेंगे तो वो तृप्त होकर हमें आशीर्वाद देंगे | पितृपक्ष
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