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Beti Bachao Beti Padhao

 बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ आज कल  बेटियों के ऊपर ना जाने कितनी योजनाएं बनाई जा रही है ,ना जाने कितने तरह - तरह के गाने बन रहे है । चित्रपट भी बनाये जा रहे है। इन सब से क्या लगता है कुछ बदलाव आ जायेगा? मै तो कहती हूँ कुछ नहीं होने वाला है इनसब से। अगर बदलाव लाना है तो पहले सामाजिक कुरितियों को जड़ से खत्म करना होगा। एक साधारण घर - परिवार में जिस दिन बेटी जन्म लेती है उस दिन सन्नाटा छा जाता है। बल्कि  बेटी के होते ही  परिवार वाले माँ को ही कोसने लगते है।  अगर वैज्ञानिक तौर पर देखे तो माँ अधिक प्रभावशाली होती है तो बेटी का जन्म होता है। तो परेशानी कहा है बाप में या माँ में ? फिर माँ क्यों निशाने पर होती है। माँ को मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है। ये सिर्फ अनपढ़ समाज तक ही सिमित नहीं है मैंने पढ़े लिखे लोगो को भी  बेटे की आस में माँ को प्रताड़ित करते देखे है।  जिस दिन बेटी जन्म लेती है उसदिन से ही समझ लीजिये वो अपने माँ - बाप के लिए परेशानी ले कर पैदा होती है।बचपन से ही बेटियों को सम्हालकर,संस्कारऔर मर्यादा के साथ बड़ा किया जाता है |  ऐसी ...

Gurukul | गुरुकुल

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  गुरुकुल प्राचीन काल में हमारे देश भारत में गुरुकुल में बच्चे पढ़ा करते थे। वहाँ भी हर विषय कि पढ़ाई होती थी। शिक्षा जीवनशैली पर आधारित थी। वहाँ बच्चों का हर तरह से ,कह सकते है चहुतरफा - शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता था। उस वक़्त बच्चे पाँच वर्ष की उम्र में ही गुरुकुल जाते थे। उन्हें उसी उम्र से अपने सारे काम स्वयं  करने होते थे। सारे शिष्टाचार सीखा  दिये  जाते थे। ज्यादातर शिक्षा प्रायोगिक हुआ करती थी  ,इसकारण बच्चे गुरुकुल में बहुत  मन लगाकर अध्ययन करते थे । साथ ही उन्हें अपने पसंद के विषय चुनने में भी आसानी होती थी।बच्चे को अपने पसंद की शिक्षा पूरी करने की छूट थी।उनकी  परीक्षा  हर प्रकार से हुआ करती थी । जो बच्चा जिस लायक होता था उस विषय में वो अपने आप को निपुण बनाता था ।ऐसा कभी नहीं होता कि सारे बच्चे एक सामान बुद्धि वाले हों , हाँ पर इसतरह के विद्या अर्जन में बच्चे स्वाबलंबी और संस्कारी जरूर बन जाते थे। उनके माँ बाप को आज के माँ-बाप की तरह पीछे-पीछे चलना नहीं पड़ता था।कितने वीर ,पराक्रमी और विदुषी हुआ...