रामायण और रामचरित मानस के रचयिता कौनहै? रामायण और रामचरित मानस, Ramayan, Ramcharitmanas

श्री गणेशाय नमः
ॐ नमः शिवाय
जय माँ अम्बे भवानी

रामायण के रचयिता कौनहै

रामचरित मानस के रचयिता कौन है

रामायण और रामचरित मानस 
 
श्री गणेशाय नमः
ॐ नमः शिवाय
जय माँ अम्बे भवानी


रामायण के रचयिता कौनहै? 

रामचरित मानस के रचयिता कौन है? 

रामायण को कब रचा गया रामायण को किसने रचा?

 रामचरितमानस को किसने, कब और क्यों रचा? 

रामायण कोई नयी चीज नहीं है हिन्दू धर्म  के लिए | 
  रामायण का मतलब क्या होता है?
रामायण का मतलब होता है जहाँ राम बसते है, निवास करते है |
दूसरा है "रामचरित मानस" जिसका नामकरण श्री शिव - शम्भू ने खुद अपने ह्रदय  मे  किया है | 

"रामायण" के रचयिता महर्षि वाल्मीकि है | 
" श्री रामचरित मानस" के रचयिता गोस्वामी तुलसीदासजी है | 

 रामायण बहुत सारे लोगो के द्वारा कहा सुना जाता रहा है| 
महर्षि वाल्मीकि ने नारद मुनि से सुना और ब्रह्मा जी की कृपा से रामायण को रचा|

चतुर्मुख ब्रम्हाजी ने महर्षि वाल्मीकि के मुख से कुछ श्लोक गाते सुने थे |वह श्लोक समान अक्षरों और चार पद वाले थे इस  कारण  वो बहुत कर्ण प्रिय हो गए थे |

चतुर्मुख ब्रह्मा जी  को वह श्लोक बहुत अच्छा लगा | 

तभी उन्होने वाल्मीकिजी से कहा-"हे मुनिश्रेष्ठ आप गुणवान धर्मात्मा और बुद्धिमान श्री रामचंद्रजी,लक्ष्मणजी और जानकीजी के तथा राक्षसों के प्रकट तथा गुप्त  सभी चरित्रों का वृत्तांत वैसे ही कीजिए जैसे आप ने नारद मुनि के श्री मुख से सुना|  

वो आप को प्रत्यक्ष दिखाई देंगे इस कारण इस काव्य मे आप के द्वारा  कही हुई कोई भी बात गलत नहीं होगी| अतएव आप श्री रामचंद्रजी की पवित्र और मन को हरने वाली कथा को श्लोकों मे  बनाये|

"महर्षि वाल्मीकि" ने परम पिता परमेश्वर  के कहने के कारण प्रेरित हो उनका चिंतन कर श्री रामचंद्र जी के अति मनोहर परम उदार चरित्र को  समान अक्षर वाले तथा यश को बढ़ाने वाले श्लोकों मे वर्णित किया|


उन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला श्री रामचरित्र, नारद जी के मुख से सुना हुआ था पर उससे भी अधिक जानने की इच्छा कर कुश आसान पर बैठ कर अपनी योग विद्या से रामचंद्र के चरित्रों को देखने लगे,और काव्य को रचने लगे |


श्री रामचंद्र जब अयोध्या के राजसिंहासन पर आसीन हो चुके थे, तब महर्षिजी ने विचित्र पदों से युक्त चौबीस हजार श्लोकों, पांच सौ सर्ग,  छः कांड को काव्य के रूप मे लोकोपकार के लिए रचा | 


अब वे विचार करने लगे की इसे पढायें किसे? तभी लव और कुश वहाँ  आये | 


उनदोनों धर्मात्मा राजपुत्रों के कण्ठ स्वर बहुत ही मधुर थे |


 बुद्धिमान और वेदो मे विश्वास रखने वाला जान कर महर्षि ने उनदोनो को ये काव्य पढ़ाया |

 
महर्षि ने श्री रामसीता के सम्पूर्ण चरित,  
रावण वध के वृतांत सहित इस काव्य का नाम "पौलस्त्यवध काव्य" रखा| 


 रावण पौलस्त्य वंश मे जन्मा था इसलिए रावण को पुलस्त्य भी कहते है| 


राम का चरित पढ़ने तथा गाने मे मधुर, द्रुत मध्य विलम्बित प्रमाणों, सातों स्वरों से युक्त बिना किसी वाध्य के गाने योग्य है | 


श्रृंगार, करुणा,हास्य, रौद्र,भयानक,वीर,वीभत्स,अद्भुत,शांत ये नौ रस होते है काव्य में |

 संगीत प्रेमी इसे बहुत ही अच्छी तरह जानते है | 


इन नवों रसों से युक्त काव्य को लव और कुश ने गया | 


वे ऋषियों, ब्राह्मणो और साधुओं के पास रामचरित को जैसे उन्हे बतलाया गया था वैसे ही बहुत ही ध्यान से उसे गाया करते थे| 


एक बार रामचंद्र जी के अश्वमेघ यज्ञ मे इन दोनों भाईयों ने प्रौढ़ विचार वाले ऋषि मुनियों की सभा मे इस काव्य को बैठ कर गाया|


जिसे सुनकर ऋषि - मुनि रोमांचित हो गए और उनके आँखों से आंसू निकलने लगे | 


सभी ने उन्हे अपने - अपने अनुसार आशीर्वाद दिए और आनंदित हो उनके गुरुकी और काव्य की भी सराहना करते हुए गए | 


श्री रामचंद्र जी ने उन्हे राज मार्ग पर जाते हुए देखा तो उन्हे ससम्मान महल मे लेकर आये |


उनका आदर सत्कार किया और सिंहासन पर बिठा कर अपने भाईयों से कहा - इन देव समान  तेजस्वी गायको के गान किये हुए इतिहास सुनो और दोनों बालकों को गाने को कहा|


उन दोनो ने वीणा  के साथ स्वर मिला कर भली भाँति उच्च स्वर मे स्पष्ट गाया| 


उस सभा मे बैठे सभी लोगों का मन उस गान को सुनकर आनंदित हो गया| सब मन्त्र मुग्ध हो उन दोनों बालकों को सुन रहे थे | श्री रामचंद्रजी तो उनके गान पर मोहित ही हो गये |


  
  श्री रामचरित मानस को तुलसीदास जी ने श्री शिव शम्भू के प्रताप से रचा | 


 श्रीराम का चरित्र श्री शिव शम्भू को बहुत ही आनंद प्रदान करता था | 

वो उनके ह्रदय मे बसा हुआ था | एक  दिन मौका देख कर श्री शिव शम्भू ने राम चरित्र को अपनी अर्धांगनी उमा को सुनाया था |

 श्री शिव शम्भू चाहते थे कि रामचरित जन -जन तक पहुँचे  ताकि हर कोई श्री राम के द्वारा निभाए गए हर धर्म और कर्म  सुन कर, समझ कर अपने जीवन को आनंदमय और सरल बनाकर सुख पूर्वक जी सके | 


इसके लिए उन्हे एक ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो रामचरित को कण्ठश्थ कर शुद्ध रूप मे जन-जन तक पहुँचा सके | 


उन्हे ये सारे लक्षण तुलसीदास जी मे दिखे थे | तुलसीदासजी अपनी माँ के गर्भ मे बारह मास तक रहने के बाद पैदा हुए थे उनका शरीर एक पांच वर्ष के शिशु की तरह था | 


वो जब जन्म लिए तो एक सामान्य शिशु की तरह रोये नहीं बल्कि "राम" शब्द उनके मुख से निकला था| 

sundarkand 


उनके पिता अद्भुत बालक को देख कर किसी अमंगल की आशंका से भयभीत रहते थे |  


उनकी माँ उन्हे देख कर बहुत भयभीत रहने लगी और अपनी दासी जिसका नाम चुनिया था उसे सौंप कर जन्म के ग्यारहवे दिन स्वर्ग सिधार गयीं | 


भगवान शंकर जी की कृपा से रामशैल पर रहने वाले श्री नरहर्यानन्दजी ने इस बालक को ढूँढ निकला | 

श्री रामजी के चौदह निवास स्थान


उन्हें अपने साथ लेकर आये उनका नाम रामबोला रखा | वैष्णवों के पाँच संस्कार कर रामबोला को राममंत्र की दीक्षा दी | 


बालक रामबोला अपने गुरु मुख से जो सुन लेते थे वो उन्हे कण्ठश्थ हो जाता था | 


तब श्री नरहरि ने रामबोला को रामचरित सुनाया | फिर उनके मन मे लोकवासना जाग्रत हुई अपने विद्या गुरु से आज्ञा लेकर अपने जन्मभूमि लौटे| 


वहाँ उन्हे अपना परिवार समाप्त हुआ दिखा | 


उन्होने विधिपूर्वक पिताजी का श्राद्ध कर वहीँ लोगों को राम की कथा सुनाने लगे | 

श्री राम-वाल्मीकि संवाद

भारद्धाज गोत्र की एक सुन्दर कन्या के साथ उनका विवाह हो गया | 

वे बहुत सुख पूर्वक अपनी नवविवाहिता के साथ रह रहे थे|  


देखिये ईश्वर की लीला | एक बार उनकी पत्नी अपने भाई के  साथ मायके चली गयी | 
पीछे -पीछे तुलसीदास चले गए | 


उनकी पत्नी को अच्छा नहीं लगा| उन्होने पति को धिक्कारा|


 पत्नी की धिक्कार ने रामबोला को तुलसीदास बना दिया| 


वो वहाँ से सीधा प्रयाग आये और गृहस्तवेश त्याग कर साधु वेश धारण किया | 


फिर वो तीर्थाटन करते हुए मानसरोवर में काकभुशुण्डिजी से मिले |


काशी मे प्रेत की मदद से हनुमानजी से मिले | 


तुलसीदास जी ने हनुमानजी से रघुनाथजी के दर्शन की प्रार्थना की|


 हनुमानजी ने रघुनाथ के दर्शन के लिए तुलसीदास जी को चित्रकूट जाने को कहा |


चित्रकूट में रामघाट पर उन्हें रामचंद्र के दर्शन हुए|


 फिर वहाँ से वे काशी आ गये| 


वहाँ उनके अंदर कवित्व शक्ति का स्फुरण हुआ और वे पहले तो संस्कृत मे ही रामचरित मानस की पद्द रचना कर रहे थे | 


तुलसीदासजी दिन मे जितने पद्द रचते रात मे वो सब गायब हो जाते थे |जब तुलसीदासजी परेशान हो गये तो श्री शिव शम्भू ने उन्हे स्वप्न मे कहा-"आप अयोध्या जाओ और अपनी भाषा मे काव्य रचना करो | 


मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी ये कविता सामवेद के अनुसार फलवती होगी|


तुलसीदासजी ने शम्भू की आज्ञा पाकर अयोध्या जाकर संवत १६३१ मे रामनवमी के दिन रामचरित मानस की रचना आरम्भ की|


 दो वर्ष सात महीना छब्बीस दिन मे ग्रन्थ की समाप्ति हुई |


 संवत १६३३ के मार्गशिर्ष शुक्ल पक्ष मे रामविवाह के दिन सातों कांड पूर्ण हो गए | 


उसके बाद भगवन की आज्ञा से तुलसीदासजी काशी आ गये| 


वहाँ भगवान विश्वकर्मा और माँ अन्नपूर्णा को रामचरित मानस सुनाया |

 रात को पुस्तक श्री विश्वनाथजी के मंदिर मे रख दिया गया | 

सवेरे जब द्वार खोला गया तो पुस्तक पर लिखा था "सत्यं शिवम् सुन्दरं"और साथ ही भगवान शंकर का हस्ताक्षर भी था |

 ये  है रामायण और रामचरित मानस |


जिसे खुद ईश्वर ने हम सबों तक हमारे जीवन को सुलभ और नीतिपूर्ण तरीकों से जीने के लिए रचाया है|


पता है दोस्तों रामायण या रामचरित मानस को काव्य रूप मे क्यों रचा गया | 

वो इसलिए की काव्य बहुत ही जल्दी किसी के भी मन को लुभा लेती है | 


सच मे ईश्वर ने तो हम तक रामचरित्र  को पहुंचने मे कोई कसार नहीं छोड़ी है | 

अब हमसब के ऊपर है इसे किस रूप मे ग्रहण करते है | 

इस कलियुग मे हम अपने चारो और अच्छे,बुरे,ठगी,व्यभिचारी दुष्ट, चालक,छली,कपटी,लोभी,सज्जन,दुर्जन न जाने किस -किस तरह के लोगो से घिरे हुए है |

 उनसब के साथ ही हमे अपना जीवन भी बिताना होता है| किस व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करना है कौन सा धर्म किसके साथ कैसे निभाना है यह भी हम राम के चरित्र से सिख सकते है |

 इन सब के साथ रहते हुए भी यदि अपना जीवन सरल और सुखी  बनाये रखना है तो रामायण से अच्छा तो कोई साथी नहीं हो सकता| 

ये हर पीढ़ी के लोगो को चाहे वो स्त्री हों या पुरुष बालक हों या वृद्ध  या युवा सबों को सदाचार की शिक्षा देता है |


 इसमे श्री राम के द्वारा निभाई गयी आदर्श मानव लीला को बहुत ही सरल,रोचक तरीके से बतलाया गया है | 

इसे अगर हर मनुष्य कम से कम एक बार भी सही ढंग से समझ कर पढ़ ले तो इस कलयुग की हर परेशानी से बहुत ही सरलता से बिना चोट खाये निकल सकता है | 

इस कलयुग रूपी भवसागर से सुख पूर्वक गोते लगते हुए यदि पार घाट  लगना है तो रामायण ही एक मात्र सच्चा सहारा और मार्ग दर्शक है |


 अपने सभी दोस्तों से एक आग्रह जरूर करना चाहूँगी की रामायण  को सिर्फ तोता राम की तरह नहीं पढ़कर समझ बूझ कर पढ़े | 

बहुत ही गहरी विद्या है | 

अगर एक बार इसे समझ कर पढ़ लिया जाये तो पूरा जीवन खुद बखुद आनंदित हो जायेगा| 
 धन्यवाद |


 


 

 

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