रूद्र का नाम शिव और शंकर कैसे पड़ा

                                                          रूद्र का नाम शिव और शंकर कैसे पड़ा  
आज मैं बहुत ही सूंदर एक पौराणिक घटना के बारे में लिखने जा रही हूँ | हो सकता है बहुत सारे लोगों को पता भी हो |

रूद्र जिन्हे शिव-शम्भू ,महादेव और शंकर भी कहते है | उनका नाम शिव - शंकर कैसे पड़ा ? 
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बात पौराणिक है एक बार रावण हिमालय क्षेत्र में कुबेरपुरी के घर - घाट देखते हुए शरवन में पहुंच गया | शरवन सूर्य की धुप में सूर्य और अग्नि के सामान चमक रहा था | शरवन में कास इतना ऊँचा था की रावण को आगे की राह दिखलाई ही नहीं दे रही थी | रावण परेशान हो इधर-उधर देख ही रहा था कि रूद्र का सेवक नन्दी एक भयानक रूप बनाकर  उसके पास आया और पूछा - तू कौन है ? इस अगम वन में तूने आने का साहस कैसे किया ? रावण बिना भयभीत हुए पूछा- तू बता तू कौन है और इस वन को अगम क्यों बोल रहा है ? उस भयानक पुरुष ने कहा- तुझे नहीं पता ये भगवान् रुद्र का निवास कैलास की तराई है | रावण ने फिर उस पुरुष से पूछा - रूद्र  कौन है जिसके नाम से तुम मुझे डरा रहे हो,और तुम कौन हो ? नंदी ने रावण से कहा-देव -दैत्य के द्वारा पूजे जाने वाले भगवान को तू नहीं जानता इस अगम क्षेत्र में  प्राणियों का आना मना  है | मैं उनका दास नंदी हूँ, तू भाग जा यहाँ से | रावण ने रूद्र के निवास स्थान के बारे मे पूछा तो नंदी ने कहा -तेरी हिम्मत कैसे हुई ये पूछने की | उनके दर्शन यु ही नहीं होते है, साधना करनी होती है | रावण ने पूछा- कैसी साधना ? तब नंदी ने कहा -तु  उसका पात्र नहीं है अगर तू उनके कोप का भजन नहीं होना चाहता है तो भाग जा यहाँ से | पर रावण नहीं माना उसने कहा -पृथ्वी पर हर एक प्राणी को विचरण करने का अधिकार है | नंदी के मना करने पर भी वो कैलाश पर रहने वाले रूद्र से मिलने के लिए पर्वत पर चढ़ने लगा नंदी को गुस्सा आया वो रावण को धकेल दिया बस रावण ने उसे उठाकर बहुत दूर फेंक दिया | तब नंदी को बहुत आश्चर्य हुआ | उसने रावण से मल्ल  युद्ध किया | रावण ने उसे पछाड़ दिया तब नंदी उसे रूद्र के पास ले जाने को तैयार हुआ| रावण जैसे - जैसे पर्वत-श्रृंग पर चढ़ रहा था वहाँ की हिमाच्छादित पर्वत श्रृंगों पर पड़ती सुनहरी सूर्य की किरणों की रंग बिरंगी छटा  को देख कर मोहित हो रहा था | वहाँ चारों ओर हिमाच्छादित पर्वत श्रृंगों की पंक्तियाँ ही केवल दिखती थीं |
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वह जब कैलाश शिखर पर पहुँचा तो अद्भुत दिखने वाले गणों से घिरे रूद्र को देखा | उनके कमर मे बाघ का चर्म, सिर पर जटा ,गले मे सर्पों की माला थीं और दृष्टि में अंतर्ज्योति थी | रावण ने इतना प्रभावशाली पुरुष कभी नहीं देखा था | उसने बिना अभिवादन किये अपने कंधे पर परशु रखे रूद्र के सम्मुख आकर खड़ा हो गया | रूद्र ने उसे देख कर नंदी से पूछा-ये कौन है ? इसे यहां क्यों लेकर आये हों ? नंदी ने कहा -देव ये कौन है, नहीं जानता | ये कैलाश के नीचे अगम क्षेत्र मे घूम रहा था मेरे रोकने पर यह नहीं माना मुझे परास्त किया |
रूद्र ने कहा -तब तो ये सम्मान के योग्य है | तब रूद्र ने रावण से पूछा अपना परिचय बतलाओ ? तू क्यों  यहाँ अगम क्षेत्र मे घूम रहे थे ? रावण बोला -महाभाग, मैं धनेश कुबेर का भाई रक्षपति लंकेश रावण हूँ | मैं यहाँ स्वछन्द घूम रहा था इस पुरुष ने मुझे रोका | रूद्र हंसते हुए बोले तो तू ही रावण है तुम्हारा मंगल हो ! तू कुशल तो हो ? धनेश कुबेर ने तुम्हारे बारे में बतलाया तुमने अपने ज्येष्ठ कुबेर की अवज्ञा क्यों की ? रावण ने कहा -मैं  ऐसा नहीं समझता | मेरे भाई ने "यक्ष संस्कृति" स्थापित की है ,किन्तु मैंने "रक्ष संस्कृति "की स्थापना की है | हमारा मूल मन्त्र है -"वयं रक्षम:"| जो मुझसे सहमत है उसे कोई डरने की जरुरत नहीं और जो सहमत नहीं है उसके लिए है ये मेरा कुठार | रूद्र बहुत ज़ोर से हंसने लगे | उन्होंने कहा -"आयुष्मन, यही कुठार तुम्हारा तर्क है ?"
रावण ने कहा - "मूल तर्क तो यही है |"रूद्र ने कहा -"मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ "| रावण ने कहा -"तो आपके लिए भी मेरा यह कुठार है"| रूद्र ने कहा -"मेरे पास भी यह त्रिशूल है" | रावण ने कहा -"तो अभी मेरा और आपका शक्ति परीक्षा हो जाए |"रूद्र ने कहा -पर तू मेरा अतिथि है ,बहुत दूर से चल कर आये हो |" रावण ने कहा -आप इसी त्रिशूल से मेरा आतिथ्य कीजिए | मैं युद्ध की याचना करता हूँ | आप दिक्पाल  महाभाग यमदेव के वंशधर हैं | मैं विश्रवा मुनि का पुत्र हूँ | आप मेरे ज्येष्ठ हैं | इसके कारण मैं आपके सिर पर वार नहीं कर रहा हूँ ,युद्ध की याचना कर रहा हूँ | "युद्धं देहि |"
रूद्र ने कहा -मैं भी तुम्हारे शौर्य से प्रसन्न हूँ | तुम्हारे युद्ध की अभिलाषा जरूर पूरी करूँगा, अभी तुम विश्राम कर लो | रावण नहीं माना, उसने कहा -नहीं महाभाग ,कार्य पूर्ति ही मेरा विश्राम है | उठाइए ,अपना त्रिशूल | रूद्र ने कहा -तब जैसी तुम्हारी इच्छा | रूद्र ने हुंकृति की, डमरूनाद किया जिसे सुनते ही सारे रुद्रगण ,गंधर्व ,देव ,यक्ष आ गए और रूद्र और रावण का वह विकट युद्ध देखने लगे |
रावण को यह देख कर बहुत आश्चर्य हो रहा था की रूद्र उसके परशु -प्रहार को बहुत आराम से विफल कर रहे थे और उसपर शूल का जमकर वार ही नहीं कर रहे है | उसे ऐसा लगा कि कोई गुरु किसी बालक को युद्ध शिक्षण दे रहा हो | रावण ने अपने जीवन में ऐसा विकट पुरुष नहीं देखा था | अंत में रावण थककर पसीना - पसीना हो गया| अपना परशु फेंककर हांफता हुआ रूद्र के सामने खड़ा हो गया |
रूद्र ने कहा -"क्या थोड़ा विश्राम चाहता है तू रावण ?
"रावण ने कहा -नहीं ,विराम चाहता हूँ | आप युद्ध कहाँ करते है खिलवाड़ करते हैं |"
रूद्र ने कहा -"किन्तु  तू युद्ध कर|"
"नहीं, शंकर ! शंकर !"
रूद्र ने कहा -"यह क्या ?"
रावण ने कहा -कल्याणं कुरु !आप देव हैं ,देवपति हैं, यह रावण आपका दास है ,आप मेरा कल्याण कीजिये -शंकर ! शंकर !
 रूद्र ने तब रावण से उसकी  रक्ष संस्कृति के बारे मे पूछा | रावण ने सारगर्भित हो उसके बारे मे बतलाया -वयं रक्षामः -हम रक्षा करते है | यही हमारी रक्ष संस्कृति है | इसके बारे में मैं अपने आगे के ब्लॉग में लिखने वाली हूँ | जिसे रूद्र ने स्वीकार किया और कहा- "तेरा प्रयत्न स्तुति योग्य है मैं तुमसे प्रसन्न हूँ | मैं भी देव दैत्य असुर सबसे समान प्रीति रखता हूँ |"
रावण बहुत खुश सिर झुकाकर रूद्र से बोला - मैं आपका शिष्य और सेवक हूँ | आपने मुझे कल्याण दान दिया है | आप मुझे अनुमति दीजिये कि मैं आपको "शंकर -कल्याणदाता ",कहकर आपकी वंदना करूँ |
रूद्र ने दोनों हाथ उठा कर कहा -"कल्याणं ते भवतु ! शिवम् ते अस्तु" !
रावण हर्ष से झूमते हुए कहा-आप शिव हो ! आप शंकर हो !
तब सभी रुद्रगण ,गंधर्वों मरुतों और देवों ने 'शंकर ,शंकर 'कहकर हर्षनाद किया | 
तब से रूद्र का नाम शंकर हुआ | रावण ने उन्हे शंकर का नाम दिया | रावण शंकर महादेव का परम भक्त हो गया |रूद्र ने हाथ उठाकर हंसते हुए कहा -तुम्हारा कल्याण हो | तेरा शौर्य स्तुति योग्य है | तू अजेय है |
रावण की रक्ष संस्कृति क्या थी ? इसके बारे में मैं अपने आने वाले पोस्ट मे जरूर लिखुंगीं | तब तक के लिए विराम |
धन्यवाद् !

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