जीवित पुत्रिका व्रत | Jiutiya vrt | Jivit putrika vrt



                                                         जीवित पुत्रिका व्रत 

                                                        ॐ गण गणपतयै नमः 

                                                           जय माँ अम्बे भवानी 




                                               Image result for maa durga images




जीवित पुत्रिका व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाई जाती है |
जीवित पुत्रिका व्रत महाराष्ट्र में श्रावण माह में अपने बच्चों के स्वस्थ और सुख के लिए उनकी माँ रखती है | उसी प्रकार बिहार में भी अश्विन माह में नवरात्री के प्रारम्भ से एक हफ्ता पहले बच्चों के सुख और स्वस्थ के लिए मायें ये व्रत रखती है और निर्जला उपवास करती है |

वैसे जीवित पुत्रिका व्रत का वर्णन दुर्गा सप्तसती में भी मिलता है | इसी दिन ब्रम्हाजी और सभी देवताओं के द्वारा महिषासुर राक्षस के वद्ध करने के लिए माँ का आवाहन करने पर माँ दुर्गा का प्राकट्य हुआ था |

 माँ दुर्गा के शक्ति रूप मे जीव पड़ने के उपलक्ष्य मे इस व्रत को किया जाता है | ये व्रत ख़ास बिहारऔर उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है | इस उपवास मे मुँह मे पानी भी नहीं लेने का प्रावधान है | 

जो महिला इस व्रत को करती है वो अपना मुँह भी नहीं धोती, कुल्ला तक नहीं करती है और तब उसे "खर जिउतिया" कहा जाता है | 

यही एक मात्र ऐसा व्रत है जिसमे, घर मे जितनी कुमारी कन्या होती है उनके नाम से मिट्टी या बालू की "मानो"  बनाई जाती है| उनकी बहुत ही सुन्दर से पूजा की जाती है |  

नवमी को उपवास तोड़ा जाता है |

जब उपवास तोड़ा जाता है तब स्नान ध्यान करके सबसे पहले  "कुशी केराव" के वज्र को (दाना जो फूलता नहीं है उसे वज्र कहते है) निगलने का नियम है वो भी बिना पानी के | 

जितने बच्चे होते है उनके नाम से एक - एक दाना कुशी केराव को बिना पानी निगलना होता है | 


एक कथा चूल्हो और सियारो की है | उसके अनुसार चूल्हो अपने बच्चों का भरण पोषण करने  के बाद ही अपने मुँह में कुछ डालती है | 
 सियारो को अपने बच्चो का कोई ख्याल नहीं रहता है | वो अपने ही भरण पोषण में लगी रहती है | 

 उपवास तोड़ने के समय एक बर्तन में चावल और कुशी केराव लेते है और एक लोटा जल लेकर रखते है |

 अपने हाथ की मुठी में जितना चावल और कुशी केराव उठता है उसे उठा के अपने पीछे ये बोलकर फेकते है की चूल्हो सन सबकोई हो, सियारो सन कोई न हो |  

 उसके बाद जल डाल के  जितने बच्चे होते है उनके नाम से एक - एक दाना कुशी केराव को बिना पानी निगलना होता है |
  
व्रत के दूसरे दिन हर घर मे बड़े प्रेम से तरह - तरह के स्वादिष्ट पकवान बनायें जाते है | 

इस दिन खाश मरुआ की रोटी और कुशी केराव का झोर बनता है |

 उपवास तोड़कर माँ के लिए तैयार किये गए स्वादिष्ट व्यंजन को भोग लगाकर सबलोग खाते है| 

उसदिन हर घर मे बहुत खुशनुमा माहौल होता है | 
पूरे घर - परिवार के लोग मिल जुलकर स्वादिष्ट भोजन करते है |


हम सब व्रत के नियम को चाहे कितनी भी रूढ़िवादिता से जोड़ दें, वास्तविकता उससे बहुत परे होती है | 

हर व्रत में कुछ न कुछ नियम बनायें गयें है उन सब के पीछे बहुत बड़ा कारण छुपा है |

 हम वास्तविकता को जाने तो शायद किसी भी व्रत को ज्यादा भाव से कर सकते | लेकिन उसकी असलियत से ही हम दूर है | 

 आप सब लोग सोच रहे होंगे इतनी खुशियाँ बेटे के सुखी और स्वस्थ रखने के लिए है | 

लेकिन सच्चाई तो ये है कि ये सब माँ शक्ति का प्राकट्य की ख़ुशी में किया जाता आ रहा है | 

इस व्रत को उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग मे भी मनाया जाता है, किन्तु वहाँ इसे नवरात्री के आठवें दिन यानि अश्विन माह शुक्ल पक्ष अष्टमी को मनाते है क्यूंकि उनलोगों की मान्यता है की पितृपक्ष मे व्रत नहीं किया जाता है | साथ ही वो लोग कृष्णपक्ष मे व्रत को मान्यता नहीं देते है |

माँ के जीव पड़ने की  कहानी इस  प्रकार है | पूर्व काल मे देवताओं और असुरों ने सौ वर्षों तक युद्ध किये और असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया | 

असुर हमेशा से बहुसंख्यक ही रहे है | इंद्र की गद्दी डोल गयी | साथ ही चन्द्रमा, सूर्य, वरुण, अग्नि, वायु, यम तथा अन्य देवता के अधिकारों को भी असुरों का स्वामी महिषासुर छीनकर सबका अधिष्ठाता बन बैठा | सभी देवताओं को उनके लोक से निकाल दिया | सभी देवता प्रजापति ब्रह्मा जी को साथ ले वहाँ पहुंचे जहाँ भगवान शंकर और विष्णु विराजमान थे | 

उनसे अपने पराजय का वृतान्त सुनाया |  देवताओं की बात सुनकर भगवान् विष्णु और शिव को दैत्यों पर बहुत क्रोध आया | उनकी भौंए तन गयीं और मुँह टेढ़ा हो गया तब अत्यंत क्रोधित चक्रपाणि के मुख से महान तेज प्रकट हुआ इसी प्रकार ब्रह्म्मा महेश तथा इन्द्र आदि सभी देवताओं के शरीर से भी बड़ा भारी तेज निकला | 
जीवित पुत्रिका व्रत

सब मिलकर एक होकर वह पुञ्ज  जाज्वल्यवान पर्वत का  स्वरुप ले चारों दिशाओं मे फैल गया और एकत्रित होकर नारी के रूप मे परिणत हो गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों मे व्याप्त हो गया | उनके शरीर का एक एक अंग सभी देवताओं  द्वारा दी हुई शक्ति से बना | 

साथ ही उनके रूप की साज - सज्जा के लिए सभी आभूषण भी देवताओं के द्वारा समर्पित की गयी | जिन देवताओं के पास जो अस्त्र शस्त्र थे, समर्पित किया |

 इस प्रकार माँ का प्राकट्य हुआ | सभी देवता माँ का ये स्वरुप देखकर बहुत प्रसन्न हुए | माँ ने हुँकार किया और उच्चस्वर से अट्टहास कर आकाश, पृथ्वी और चारों दिशाओं को गुँजा दिया और हलचल मचा दिया | 
जीवित पुत्रिका व्रत
देवताओं ने सिंहवाहिनी भवानी की जय जयकार किया | उनके द्वारा की गयी हुँकार सुनकर दैत्य घबड़ा गए | माँ भवानी ने देवताओं के क्रोध से प्रकट होकर महिषासुर और उसकी पूरी सेना का वध किया था |

 "माँ शक्ति" पार्वती के शरीर कोष से प्रकट होकर शुम्भ, निशुम्भ आदि  दैत्यों  और उसकी पूरी सेना का वध किया और पूरे पृथ्वी को असुरों से मुक्त किया | जब - जब  धर्म की हानि होती है और असुरों की संख्या बढ़ जाती है तब - तब माँ अपने अलग - अलग रूपों मे शरीर धरकर सभी की पीड़ा हड़ती है | 

जीवित पुत्रिका व्रत को हम "माँ शक्ति"  के आवाहन के लिए करते है | 

 जब हम कोई भी व्रत लेते है निर्जला उपवास करते है तो हमारे शरीर का भी शुद्धिकरण होता है | जब शरीर शुद्ध हो तो मन मस्तिष्क भी शुद्ध होता है |

  उपवास का मतलब ही होता है ईश्वर के साथ जुड़ना | जब भी हम उपवास करते है तो स्वच्छ तन,मन से ईश्वर के साथ जुड़ के रहते है | उनके ही ध्यान में डूबे रहते है | उसके बाद हम जो व्रत लेते है वो सब ईश्वर के हाथ में होता है और पूर्ण होता है | 
 

हम सब हमेशा चाहते है की माँ शक्ति हमारे साथ हों तो हम उनके आवाहन के लिए हर वर्ष ये उत्सव मानते है | 
माँ का सानिध्य पाने के लिए हम थोड़ा सा अपने शरीर को तपा कर हम उनकी सानिध्य पाते है | 

निर्जला व्रत का मतलब ही होता है शरीर को तपाना | तप से शरीर शुद्ध होता है और तब हम बहुत प्रेम से अपने ईश्वर के साथ जुड़ सकते है |  


           माँ अम्बे भवानी की जय




 दोस्तों , शायद बहुत कम लोगों को ये पता  होगा की जीवित पुत्रिका व्रत क्यों मनाया जाता है? हम सब किसी भी व्रत को बस आँख मूँद कर या डरकर करते रहते है | एक व्रत की पुस्तक मिलती है उससे कथा पढ़ लेते है और बहुत ही भाव विह्वल हो कर व्रत उपवास करते रहते है | उस व्रत की किताब मे अकसर अपनों पर आयी विपदा को दूर करने के लिए व्रत की विधि लिखी होती है | इसके कारण लोग डर से व्रत करने लगते है | ज्यादातर व्रत पुत्र या पति के लिए ही है | बेटियों के लिए कौन व्रत करता है वो तो व्रत करने के लिए पैदा होतीं है | सब के पापों का नाश वही तो जन्म लेकर करती है ,और यही सत्य है | लोग जिस लड़की को जन्म लेने पर बोझ समझते है वही सबकी सबसे बड़ी रक्षक होती है | चाहे वो माँ के रूप मे, बेटी के रूप मे या फिर पत्नी के रूप मे - किसी भी रूप मे हो अपने परिवार को हर मुश्किल से उबारती है |
तो आपलोगों को जीवित पुत्रिका व्रत की सच्चाई से अवगत कराती हूँ | शायद आपलोग मेरी बातों पर यकीन न भी करें पर यही अटल सत्य है | ये आपको कहीं किसी कथा वाली किताब मे नहीं मिलेगी क्यूंकि सच्चाई कथा मे नहीं लिखी जाती है वहाँ सिर्फ डराकर व्रत करवाने की विधि होती है |

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