#Subhashitani | #सुभाषितानि | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।

सुभाषितानि


 संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च 

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||


भावार्थ :

जिस कुल में पति, पत्नी से और पत्नी, पति से अर्थात पति पत्नी एक दूसरे से संतुष्ट रहते है, खुश रहते है | उस कुल की उन्नति और विकाश निश्चित है |
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||



मतलब पति - पत्नी को एक दूसरे को समझना चाहिए | सुख दुःख का साथी होना चाहिए और कभी कुछ मनभेद हो तो उसे बैठ कर सुलझा लेना चाहिए, ताकि दोनों एक दुसरे के साथ खुश रह पाएं संतुष्ट रह पायें | तो कुल - परिवार का विकास निश्चित होगा |



संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||

संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् ||


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