अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः | श्रीमद्भागवत गीता

  

|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः 


श्रीमद्भागवत  गीता 



अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ 

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌ । तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌ ॥ 


          अन्नात भवन्ति भूतानि  परजन्यात् अन्न सम्भवः | यज्ञात् भवती पर्जन्यः यज्ञः कर्म समुद्भवः ||

कर्म ब्रम्ह उद्भवं विद्धि  ब्रम्ह अक्षर समुद्भवम् | तस्मात् सर्व गतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ||



 अन्नात् - अन्न से;  भवन्ति - उत्पन्न होता है;  भूतानि - भौतिक शरीर; परजन्यात् - वर्षा से; अन्न - अन्न का  सम्भवः - उत्पादन; यज्ञात् - यज्ञ संपन्न करने से;  भवती - संभव होती है   पर्जन्यः - वर्षा;   यज्ञः -  यज्ञ का संपन्न होना;  कर्म -  नियत कर्तव्य से; समुद्भवः - उत्पन्न होता है;

कर्म - कर्म;   ब्रम्ह  - वेदों से;  उद्भवं - उत्पन्न;  विद्धि  - जानो;   ब्रम्ह - वेद;    अक्षर -  वेद;  समुद्भवम् -  साक्षात् प्रकट हुआ;  तस्मात् - अतः; सर्वगतं - सर्वव्यापी;  ब्रह्म -  ब्रम्ह;   नित्यं - शश्वत रूप से;  यज्ञे - यज्ञ में;  प्रतिष्ठितम् - स्थित; 

[श्रीमद्भागवत  गीता - तीसरा अध्याय, १४ - १५ श्लोक]


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ 

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌ । तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌ ॥ 


 

सम्पूर्ण प्राणी अन्न पर आश्रित है | अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से (वर्षा से) होती है | वृष्टि यज्ञ संपन्न करने से होती है और यज्ञ हमारे अच्छे कर्मों से होता है | 

हमें अच्छे और बुरे कर्मों का ज्ञान वेदों से मिलता है | 

 

परन्तु ध्यान साधना में लीन लोगों ने इसकी व्याख्या बहुत ही सुन्दर और सरल तरीके से की है | 

 अन्न का मतलब चावल, गेहूं, दाल नहीं है |  यहां अन्न का मतलब हमारा भौतिक शरीर है  जिसे अन्नमय कोष कहते है | हमारा भौतिक शरीर प्राणमय (energy body) कोष से बना हुआ है |  

 प्राणमय कोष को  वृष्टि [वर्षा] कहते है | जो लोग प्रतिदिन नियम से ध्यान करते है उनका आज्ञा चक्र खुल जाता है, तो ध्यान में बहुत सारे ब्रह्मांडीय ऊर्जा दीखते है | 

 उसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा से प्राणमय कोष बना हुआ है जिससे हमारे इस भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है |

हम सभी जीव इसी प्राणमय कोष से बने हुए है | जब हम लोक कल्याण का कार्य करते है तो वो वास्तव में यज्ञ होता है | 

म जिस तरह का कर्म करते है उससे हमारा प्राणमय कोष बनता है और जिस प्रकार का प्राणमय कोष होता है वैसा ही हमारा भौतिक शरीर बनता है |


 हम आज जो भी स्वयं के साथ घटित होते देख रहे है वो सब हमारी खुद के कर्मो से तैयार होता है | 


हम स्वयं के कर्मो से अपने इस भौतिक शरीर की संरचना करके जन्म लेते है | जो भी हमारे साथ घटित होता है वो सब हमारे पूर्व जन्मों  के कर्मो का फल होता है | वो हमें स्वीकार करके आगे निकलना होता है | 

 

हमें कौन कर्म करना है और कौन कर्म नहीं करना है ये सब वेद शास्त्रों में लिखा है | 


वेद को जानना और समझना बहुत ही आसान हो जाता है जब हम अपनी आत्मा के साथ जुड़ने लगते है | ध्यान करने लगते है |  ध्यान करने से सब कुछ बहुत ही आसानी से समझ में आने लगता है | 


जैसे ही हम ध्यान साधना में जाते है हम अपनी आत्मा से जुड़ जाते है | आत्मा से जुड़ते ही हम अपने परम आत्मा से जुड़ने लगते है | 


जब परम आत्मा से जुड़ जाते है तो अपने जीवन का धेय सामने आ जाता है | हम स्वयं को जान जाते है | हमारे इस जन्म का मतलब समझ में आने लगता है | फिर जीवन बहुत आसान हो जाता है |   


वेद शास्त्रों में हम कौन है, आत्मा का परमात्मा से मिलन, जीवन जीने की कला, अच्छे - बुरे कर्मो का फल, प्रतिफल | जीवन का धेय | जन्म - मृत्यु का चक्र आदि बातों को समझाया गया है | 


हम इन सब बातों को जान ले तो हम कभी कष्ट नहीं भोगते है | इसके लिए हमें शास्त्र पढ़ना चाहिए | 

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