अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः | श्रीमद्भागवत गीता
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः
श्रीमद्भागवत गीता
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् । तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥
[श्रीमद्भागवत गीता - तीसरा अध्याय, १४ - १५ श्लोक]
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् । तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥
सम्पूर्ण प्राणी अन्न पर आश्रित है | अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से (वर्षा से) होती है | वृष्टि यज्ञ संपन्न करने से होती है और यज्ञ हमारे अच्छे कर्मों से होता है |
हमें अच्छे और बुरे कर्मों का ज्ञान वेदों से मिलता है |
परन्तु ध्यान साधना में लीन लोगों ने इसकी व्याख्या बहुत ही सुन्दर और सरल तरीके से की है |
अन्न का मतलब चावल, गेहूं, दाल नहीं है | यहां अन्न का मतलब हमारा भौतिक शरीर है जिसे अन्नमय कोष कहते है | हमारा भौतिक शरीर प्राणमय (energy body) कोष से बना हुआ है |
प्राणमय कोष को वृष्टि [वर्षा] कहते है | जो लोग प्रतिदिन नियम से ध्यान करते है उनका आज्ञा चक्र खुल जाता है, तो ध्यान में बहुत सारे ब्रह्मांडीय ऊर्जा दीखते है |
उसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा से प्राणमय कोष बना हुआ है जिससे हमारे इस भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है |
हम सभी जीव इसी प्राणमय कोष से बने हुए है | जब हम लोक कल्याण का कार्य करते है तो वो वास्तव में यज्ञ होता है |
हम जिस तरह का कर्म करते है उससे हमारा प्राणमय कोष बनता है और जिस प्रकार का प्राणमय कोष होता है वैसा ही हमारा भौतिक शरीर बनता है |
हम आज जो भी स्वयं के साथ घटित होते देख रहे है वो सब हमारी खुद के कर्मो से तैयार होता है |
हम स्वयं के कर्मो से अपने इस भौतिक शरीर की संरचना करके जन्म लेते है | जो भी हमारे साथ घटित होता है वो सब हमारे पूर्व जन्मों के कर्मो का फल होता है | वो हमें स्वीकार करके आगे निकलना होता है |
हमें कौन कर्म करना है और कौन कर्म नहीं करना है ये सब वेद शास्त्रों में लिखा है |
वेद को जानना और समझना बहुत ही आसान हो जाता है जब हम अपनी आत्मा के साथ जुड़ने लगते है | ध्यान करने लगते है | ध्यान करने से सब कुछ बहुत ही आसानी से समझ में आने लगता है |
जैसे ही हम ध्यान साधना में जाते है हम अपनी आत्मा से जुड़ जाते है | आत्मा से जुड़ते ही हम अपने परम आत्मा से जुड़ने लगते है |
जब परम आत्मा से जुड़ जाते है तो अपने जीवन का धेय सामने आ जाता है | हम स्वयं को जान जाते है | हमारे इस जन्म का मतलब समझ में आने लगता है | फिर जीवन बहुत आसान हो जाता है |
वेद शास्त्रों में हम कौन है, आत्मा का परमात्मा से मिलन, जीवन जीने की कला, अच्छे - बुरे कर्मो का फल, प्रतिफल | जीवन का धेय | जन्म - मृत्यु का चक्र आदि बातों को समझाया गया है |
हम इन सब बातों को जान ले तो हम कभी कष्ट नहीं भोगते है | इसके लिए हमें शास्त्र पढ़ना चाहिए |
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