शिष्टाचार | Sanskar | संस्कार

बच्चों में अच्छे संस्कार बचपन से डालें


संस्कार कैसे बनते है 


अच्छे संस्कार, शिष्टाचार 




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संस्कार का मतलब शुद्धिकरण होता है | संस्कार सक्षम, स्वाबलंबी बनाता है | 
संस्कार का मतलब वो व्यवहार जो स्वाबलम्बी बनने में मदद करते है | 

वैसे तो एक बच्चे को ५ वर्ष की उम्र से संस्कार डालना शुरू हो जाता है | लेकिन एक बच्चा जब से बातों को समझने लगता है तब से उनमे संस्कार और व्यवहार डालना शुरू कर देना चाहिए |  

सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक क्या करना और क्या नहीं करना ये बच्चों को कर के सीखना शुरू कर देने से बच्चा उसे ग्रहण करता चला जाता है | बच्चा जो देखता है वो खुद ही करने लगता है | इस लिए उसे हम सब सीखा सकते है | 


बच्चे गीली मिट्टी के समान होते है | उन्हें हम जैसा चाहे ढाल सकते है | 
पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे | हमारे साथ हमारे दादाजी, दादीजी, चाचाजी, चाचीजी, भाई - बहन सब रहते थे | परिवार में हर काम हम अपने बड़ों को देखकर सीख जाते थे | कैसे किसके साथ रहना, किसके साथ कैसे व्यवहार करना, अभिवादन करना - सब हम अपने परिवार में अपने बड़ों से सीख जाते थे | हम व्यवहार, आचार - विचार सब घर में सीखते थे |

आज सब लोग काम की वजह से छोटे एकल परिवार में रहने लगे है | हमारे बच्चे सिर्फ अपने माता - पिता के साथ रहने लगे है | इस कारण हमारी जिम्मेदारी है की हम उन्हें वही संस्कार दें | उन्हें सामाजिक आचार, विचार, व्यवहार सिखाना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि वो सभ्य और संस्कारी बने,स्वावलम्बी बने और हर मुश्किल को बिना किसी परेशानी हल कर सके |  sanskar  sanskar  sanskar  sanskar  sanskar  

 बच्चों में शुरू से संस्कार डालें | छोटा बच्चा जब सब कुछ समझना शुरू कर दे, तब उन्हें जीवन में काम आने वाली जरुरी बातें सिखलाना शुरू कर दें | किन्तु प्यार से, उनके दोस्त बनकर, क्यूंकि बच्चे प्यार की भाषा समझते है। | sanskar 

खाना खाने के पहले हाथ धोना, खाने के बाद हाथ धोना | बाहर से आये तो सबसे पहले अपने जूता - चप्पल को खोलकर सही जगह रखना | बाहर का जूता चप्पल पहन कर घर में न घूमना | बाहर से आये तो सबसे पहले हाथ - मुँह धोना तभी बैठना | शौच से आने के बाद अच्छी तरह हाथ, मुँह और पैर धोना | रसोई में चप्पल या जूता पहन कर कभी नहीं जाना | खाना खाने का तरीका, किसी से बात करने का तरीका,अपने से बड़ो के साथ कैसा व्यवहार करते है छोटों के साथ कैसा व्यवहार करते है | भगवान को, अपने से बड़ो को हाथ जोड़कर प्रणाम करना, सम्मान देना | प्रातःकाल सबसे पहले अपने भगवान को प्रणाम करना | हाथ जोड़कर भगवान की प्रार्थना करना | बच्चों में शुरू से ये संस्कार डालें | ये सब उनको एक अच्छा इंसान बनने के लिए बहुत जरुरी है | sanskar sanskar sanskar sanskar sanskar sanskar sanskar 

लेकिन उन्हें सिखाने के लिए सामने से वो करना भी जरुरी है | बच्चे रोज ये सब देख - देखकर अपनी आदत में शामिल कर लेते है | बच्चों को अपने परिवार के सभी लोगों से समय - समय पर जरूर मिलाना चाहिए | परिवार में तरह - तरह के विचारधारा के लोग होते है | उनके साथ कुछ दिन बिताने से बच्चा ये समझ जाता है कि कैसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है | बच्चा समाज में लोगों के साथ बहुत ही आराम से चलने के काबिल बनता है |

जैसे - जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है उसे अपना सारा काम खुद से करना सिखलायें | सात वर्ष के उम्र का बच्चा खुदसे अपना कपड़ा धोकर स्नान कर सकता है | ये बिलकुल दिमाग से निकाल दे कि वो तो अभी बहुत छोटा है, नहीं कर पाएगा | वो हमसे ज्यादा अच्छा कर सकता है | भले ही थोड़ा धीरे - धीरे करे | खाना खाने के बाद वो अपना बर्तन भी हमसे ज्यादा अच्छा साफ़ कर सकता है | स्कूल से आकर अपना बस्ता सही जगह रखना, अपने यूनिफार्म और जूता मौजा खोलकर सही जगह रखना, हाथ मुँह धोकर ही खाना ये आदत स्कूल जाना शुरू करने के समय ही डाल दें | सब सीखते है बच्चे | सीखा कर तो देखें | ये सब संस्कार उन्हें स्वाबलंबी बनता है |

अगर हम चाहते है कि हमारा बच्चा हमसे झूठ न बोले तो सबसे पहले वो हमें करना होता है | हम दूसरों से उनके सामने झूठ बोलते है | जाने अनजाने बच्चों से भी झूठ बुलवाते है , जैसे कि - "कह दो घर में नहीं है", और उम्मीद करते है बच्चे हमसे सच बोलें | हम यदि सही तरीके से उनके साथ पेश आते है वो भी वैसे ही बनते है | हम उन्हें जो दिखाते है वो वही करते है | बच्चे तो माँ - बाप का आईना होते है | बच्चों के हर सवालों को, उनके हर प्रश्नों को सुलझाने की कोशिश करें, तो बच्चा इधर उधर भटकेगा नहीं। किन्तु उनके दोस्त बनकर, हिटलर बनकर नहीं | बच्चें सब समझते है। वो भी भाव के भूखे होते है। प्यार की जो डोर होती है ना वो उन्हें मजबूती प्रदान करती है।

बच्चों को समय का भी सही उपयोग बतलाना जरुरी है | कब पढ़ना है, कब खेलना है, खेलकर समय से वापस आना है वगैरह - वगैरह | हमे अपना पूरा समय देना होता है बच्चो को संस्कारी बनाने के लिए | तब जो निखारा हुआ हीरा निकल कर आता है, वो सम्मान और यश का पात्र होता है |

एक बात और बहुत जरुरी है - कृपया अपने बच्चो को ये बोल - बोल कर बड़ा न करें कि ये तो मेरे बुढ़ापे का सहारा है और बैशाखी है | अपने आप को क्यों लाचार बना कर बच्चों के सामने पेश करना है | यहाँ पर हमें पंछी से सबक लेना है | पंछी के बच्चों के जब पंख निकल आते है तो पता है वो क्या करती है? वो अपने बच्चे को उड़ना सिखाती है और जैसे ही बच्चा उड़ने लगता है उसे आजाद कर देती है यह कह कर कि -"जी ले अपनी जिंदगी जी भर के" | कोई - कोई बच्चा पंछी का भी कामचोर होता है - नहीं उड़ना चाहता है, तो उसकी माँ उसे काँटेपर रखती है | कष्ट तो कुछ भी करवा देता है और वो बच्चा उड़ने लगता है | ऐसे ही हमें भी अपने बच्चों को उड़ने के लायक बना कर उनको उनकी जिंदगी जीने के लिए आजाद कर देना चाहिए | भला आजादी किसे पसंद नहीं | sanskar sanskar sanskar sanskar sanskar sanskar 

झूठ मुठ की दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए | अगर हमने अपने बच्चों को संस्कारी बनाया है तो वो खुद हमारे पास आयेंगे | उन्हें उनके जीवन को सही तरीके से जीने के लिए जो सलाह चाहिए उनके पूछने से जरूर देना चाहिए | अगर बच्चे प्यार की डोर से बंधे है तो उन्हें हर वक्त हमारा ख्याल होता है । अगर ऐसा किया जाए तो पूरी जिंदगी रिश्तों में मिठास बनी रहेगी | सब कुछ अच्छे संस्कार का परिणाम होता है | इसमें सबसे बड़ा हाथ माँ का होता है | माँ अपने बच्चे को जैसा चाहे ढाल सकती है | वो चाहे तो गुंडा बना सकती है ,चाहे तो संस्कारी इंसान क्यूंकि अपने बच्चे के साथ वो ही सबसे ज्यादा समय बिताती है |

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लक्ष्मण -परशुराम संवाद 


 
 

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