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Sohar | Krishn janm sohar | Krishna bhajan | Krishnjanmashtmi geet, Devki ke koikh sa | कृष्णजन्म सोहर | कृष्णजन्माष्टमी गीत

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    कृष्णजन्म सोहर   कृष्णजन्माष्टमी गीत  Devki ke koikh sa  देवकी के कोखी से जनमल कृष्ण कन्हैया रे - 2 ललना रे विधि के लिखल संजोग यशोदा भेली मैया रे ! - 2 जेहल मे जननी के नोर देवकी के लाल दूर गेल रे -2   ललना रे सोचि के केलथि संतोष नेना के प्राण बचि गेल रे ! -2 पुलकित नन्द के दुआरि जनम लेल बालक रे -2 ललना रे देखू सखी रूप निहारि देखथि मैया अपलक रे ! -2 दीनघर बसन के दान कि संगे अन्न द्रव दान रे -2 ललना रे गोकुला मे नवल विहान बढ़ल नन्द-वंश मान रे ! - 2 सुनू सुनू माय यशोदा जीबहु पूत तोहर रे -2 ललना रे पलना मे डोलथि कन्हैया रचल शिव सोहर रे ! -2   Devki ke koikh sa

#Subhashitani, सुभाषितानि

Subhashitani सुभाषितानि "उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्"॥ "उत्साह" श्रेष्ठ पुरुषों का बल होता है |  "उत्साह" से बढ़कर कोई बल नहीं है |  "उत्साहित व्यक्ति" के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होता |  इसे हम सरल भाषा में समझ सकते है | 

#सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय

 सुभाषितानि   विद्या विवादाय धनं मदाय "विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परपीडनाय । दुर्जन को   "विद्या" मिले तो वो विवाद के लिए इस्तेमाल करता है,  "धन" घमण्ड करने के लिए  और  "शक्ति" दूसरों को परेशान और दुखी करने के लिए प्रयोग करता है । खलस्य: साधो: विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय" || जबकि दुर्जन के विपरीत सज्जन,  "विद्या" को ज्ञान के लिए,  "धन" को दान के लिए  और  "शक्ति" को रक्षा के लिए प्रयोग करते है । || हरी बोल ||  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सु...

कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन। Kabirdas ka doha | कबीर के दोहा |

कबीर के दोहा   कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन। जैसी संगति कीजिये, तैसो ही फल तीन।। स्वाति नक्षत्र में ओश की बून्द केले के पौधे पर पड़े तो  कपूर बन जाता है | सीप के मुँह में जाए तो मोती बन  जाता है और वही बून्द यदि साँप के मुख में जाए तो  विष बन जाता है |  प्रकीर्ति, स्वाभाव और संगती के  कारण एक ही चीज का प्रभाव अलग - अलग  लोगों  पर अलग अलग होता है |  https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/bhavyatam-bhagwat-geeta-bhagwat-geeta.html https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/aloe-vera-kanyaka-benefits-and-uses-of.html https://youtu.be/luCPkiGxKdI -------Awala ka achar https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/04/subhashitani_10.html कबीर के दोहा कबीर के दोहा  स्वाति नक्षत्र में ओश की बून्द केले के पौधे पर पड़े तो  कपूर बन जाता है | सीप के मुँह में जाए तो मोती बन  जाता है और वही बून्द यदि साँप के मुख में जाए तो  विष बन जाता है | प्रकीर्ति, स्वाभाव और संगती के  कारण एक ही चीज का प्रभाव अलग - अलग...

शक्ति और क्षमा कविता | क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल | श्री रामधारी सिंह दिनकर

  शक्ति और क्षमा   कविता के रचनाकार -- श्री रामधारी सिंह दिनकर  क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुये विनत जितना ही दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो। तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे, बैठे पढ़ते रहे छन्द अनुनय के प्यारे-प्यारे। उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से। सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में चरण पूज दासता ग्रहण की बँधा मूढ़ बन्धन में। सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की। सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।   subhashitani | अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः   सुभाषितानि | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च   palash ke fayade ...

कन्यादान गीत | Vivah geet | Kanyadaan geet | बेटी दान गीत | विवाह गीत | कन्यादान गीत

   कन्यादान गीत जांघिया चढ़ाए बाबा बैसला मंडप पर -2 बाबा करू ने कन्यादान हे -2 आहे बाबा करू ने धिया दान हे |- 2 वर कर कंज तर कन्या कर ऊपर, वर कर कंज तर कन्या कर ऊपर ताहि ऊपर फूल पान हे , आहे ताहि ऊपर फूल पान हे  जांघिया चढ़ाये बाबा बसला मंडप पर, 2 बाबा करूँ न कन्यादान हे | आहे बाबा करूँ न धिया दान हे |  दोनों रे कुल के रा नाम धरौले | आहे दोनों रे कुल के रा नाम धरौले |    अग्नि के साक्षी धरौल हे , आहे अग्नि के साक्षी धरौल हे | जांघिया चढ़ाये बाबा बसला मंडप पर, 2 बाबा करूँ न कन्यादान हे | आहे बाबा करूँ न धिया दान हे |   सिसकी सिसकी रोवे मैय्या सुनैना - 2 तुहु बेटी हर लै मोरा प्राण हे  आहे तुहु बेटी हर लै मोरा प्राण हे  जांघिया चढ़ाये बाबा बसला मंडप पर, 2 बाबा करूँ न धिया दान हे |   आहे बाबा करू ने कन्यादान हे  जाहि धिया लेहो बाबा नटुआ नचौला हो -2 सेहो बेटी भेला वीरान हे  जांघिया चढ़ाये बाबा बसला मंडप पर, 2 बाबा करूँ न धिया दान हे |   आहे बाबा करू ने कन्यादान हे     कनैते कनैते बाबा करै कन्यादान...

मैथिलि विवाह गीत | विदाई गीत | vivah geet

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मैथिलि  विवाह  गीत | विदाई गीत चलली दुल्लरि धीया पिया के नगरिया हे पिया के नगरिया, सुन्न कैली माय के कोर ! || 1 ||  बिचुकथि मयना सभ दाइ बहिना हे सभ दाइ बहिना, बहल नयन से नोर || 2 || चलल कहरिया  छोड़ि के दुअरिया हे छोड़ि के दुअरिया,   छूटि गेलै बाप के गाँव || 3 || सासुघर चली देली  नैहरा सँ दूर भेली नैहरा सँ दूर भेली बेटीधन दोसरे के नाम || 4 || हेरथि सुनयना चहुदिश अंगना हे चहुदिश अंगना   कहू आब  कहती के माय,  कहू आब  कहती के माय || 5 ||  मोन पड़ै नेनपन रुनझुन पैजन, रुनझुन पैजन   सोचि सोचि रहलै कनाय || 6 || रसे रसे रसू धीया पिया घर बसू धीया पिया घर बसू धीया धरू धरू  बाप के आशीष || 7 || दूर रहै असगुन सुख सजै चौगुन  सुख सजै चौगुन अचल सोहाग तोर शीश || 8 || https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2020/11/hair-care-baalon-ki-dekhbhal.html मैथिलि विवाह गीत | विदाई गीत | vivah geet मैथिलि विवाह गीत | विदाई गीत | vivah geet मैथिलि विवाह गीत | विदाई गीत | vivah geet मैथिलि विवाह गीत | विदाई गीत | vivah gee...

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचित कविता -- "वर दे, वीणावादिनि वर दे" | "Varde veena vadini varde"

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 सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचित कविता       वर दे, वीणावादिनि वर दे!    वर दे, वीणावादिनि वर दे! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव         भारत में भर दे! काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर         जगमग जग कर दे! नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव; नव नभ के नव विहग-वृंद को         नव पर, नव स्वर दे! वर दे, वीणावादिनि वर दे।