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#Subhashitani | #सुभाषितानि | #अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः

सुभाषितानि अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् || भावार्थ: जिनका स्वाभाव अभिवादन करने का है और जो नित्य बड़े बुजुर्गों की सेवा करते है, उनकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती है | सुभाषितानि https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/04/subhashitani_10.html https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/aloe-vera-kanyaka-benefits-and-uses-of.html https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/authentic-bridal-ubtan-how-to-remove.html https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/6-acidity-blood-purifier-liver-activate.html must watch my youtube channel जिनका स्वाभाव अभिवादन करने का है और जो नित्य बड़े बुजुर्गों की सेवा करते है, उनकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती है | जिनका स्वाभाव अभिवादन करने का है और जो नित्य बड़े बुजुर्गों की सेवा करते है, उनकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती है | जिनका स्वाभाव अभिवादन करने का है और जो नित्य बड़े बुजुर्गों की सेवा करते है, उनकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती है | ...

#Subhashitani | #सुभाषितानि | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।

सुभाषितानि  संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च  संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् || भावार्थ : जिस कुल में पति, पत्नी से और पत्नी, पति से अर्थात पति पत्नी एक दूसरे से संतुष्ट रहते है, खुश रहते है | उस कुल की उन्नति और विकाश निश्चित है | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् || संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् || मतलब पति - पत्नी को एक दूसरे को समझना चाहिए | सुख दुःख का साथी होना चाहिए और कभी कुछ मनभेद हो तो उसे बैठ कर सुलझा लेना चाहिए, ताकि दोनों एक दुसरे के साथ खुश रह पाएं संतुष्ट रह पायें | तो कुल - परिवार का विकास निश्चित होगा | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् || संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च । यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्...

सुभाषितानि | Subhashitani | रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः ।

  सुभाषितानि  Subhashitani  रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः । विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः ॥  भावार्थ: व्यक्ति रूप, यौवन से संपन्न हो सकता है, श्रेष्ठ कुल भी संभव है | लेकिन विद्या के बिना वैसे लोग भी पलाश के फूल की तरह है जो बहुत खूबसूरत होते है किन्तु खुशबु विहीन है | अर्थात विद्यावान होना सबसे जरुरी है |  रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः । विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः ॥ व्यक्ति रूप, यौवन से संपन्न हो सकता है, श्रेष्ठ कुल भी संभव है | लेकिन विद्या के बिना वैसे लोग भी पलाश के फूल की तरह है जो बहुत खूबसूरत होते है किन्तु खुशबु विहीन है | अर्थात विद्यावान होना सबसे जरुरी है |  yatr naryastu pujayte ramante      सुभाषितानि | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च       सुभाषितानि | विद्या विवादाय धनं मदाय पलाश | पलाश के अद्भुत फायदे रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः  रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः  रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशाल-कुल-सम्भवाः  व्यक्ति रूप, यौवन स...

"महामृतुंजय मन्त्र" | #Mahamrityunjay mantra | #Mahamantra | #Shiv mantra

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  "महामृतुंजय मन्त्र" ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः  ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं  उर्वा रुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय अमामृतात |  ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ स्वः जूं  हौं ॐ || ॐ हौं जूं स्वः  ॐ भूर्भुवः स्वः  ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं  उर्वा रुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय अमामृतात |  ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ स्वः जूं  हौं ॐ || ॐ हौं जूं स्वः  ॐ भूर्भुवः स्वः  ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं  उर्वा रुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय अमामृतात | ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ स्वः जूं  हौं ॐ || ॐ हौं जूं स्वः  ॐ भूर्भुवः स्वः  ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं  उर्वा रुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय अमामृतात |  ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ स्वः जूं  हौं ॐ || ॐ हौं जूं स्वः  ॐ भूर्भुवः स्वः  ॐ त्रियम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं  उर्वा रुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय अमामृतात | 

पलाश | पलाश के अद्भुत फायदे | पलाश का शरबत | पलाश से होली के रंग | Palas | Palash ke fayede | Palash se sharbat | Palash se rang | Palash se holi ke rang

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      पलाश  पलाश के अद्भुत फायदे   पलाश का शरबत   पलाश से होली के रंग  Palas   Palash ke fayede  Palash se sharbat  Palash se rang        Palash se holi ke rang         फगुनमा आयो सखी आज कुमकुम उरत आंगनमा | फगुनमा आयो सखी दोस्तों, जैसे शर्दी के मौसम के आने से पहले प्रतिदिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में एक महीना कार्तिक स्नान कर हम अपने शरीर को शर्दी के लिए तैयार करते है | वैसे ही गर्मी केआगमन से पहले प्रकीर्ति ने बहुत ही खूबसूरत तैयारी की हुई होती है | ठीक गर्मी के आने से पहले पृथ्वी पलाश के फूल से ढक जाती है | खूबसूरत रंगबिरंगे पलाश के फूल | इस फूल से खूबसूरत रंग तैयार किया जाता है | होली के त्योहार पर इसी पलाश के फूल का रंग सिर से डाल कर होली खेला जाने का पुराना प्रचलन रहा है | पलाश के अद्भुत फायदे  पलाश का फूल और पत्ता बहुत ठंडा होता है | इससे सिर से स्नान करने से पूरी गर्मी त्वचा को राहत मिलती है | इससे शरबत भी बनाया जाता है | कैसी भी तप्ति गर्मी हो इसका शरबत शरीर को ठंड...

पूजा की मूर्ति को कैसे विसर्जित करें | पूजा की खंडित मूर्ति का क्या करें | पुरानी तस्वीर को कैसे dispose करें

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  पूजा की मूर्ति को कैसे विसर्जित करें  पूजा की खंडित मूर्ति का क्या करें   पूजा की तस्वीर का क्या करें    पुरानी तस्वीर को कैसे dispose करें    Puja ki murti ka visarjan Bhagwaan ki khandit murti ya fir tasveer ka kya karein   How to dispose of old photographs    हमारे हिन्दू धर्म में अलग - अलग त्योहारों में मूर्ति पूजा का विशेष प्रचलन है। हम बहुत ही सम्मान के साथ अपने ईश्वर की मूर्ति घर लाते है।  उनकी प्राण प्रतिष्ठा करते है। उनकी पुरे हर्षोल्लास से पूजा पाठ करते है। फिर उत्सव समाप्त होने पर हम उनका विसर्जन भी करते है।   पुरे आर्यावर्त में मिट्टी और बालू से बनी मूर्ति को पूजा के लिए लाये जाने का प्रचलन है, वही सबसे शुद्ध माना जाता है।   हम सभी जानते है   हमारी   सृष्टि पांच तत्वों से निर्मित है। उन्ही पांच तत्वों से हम, हमारा पूरा समाज, हमारे आसपास का पूरा वातावरण, निर्मित है,और हम सभी जानते है इन सब के विलीन होने के तरीके। तो हम जिस भी चीज में प्राण डालते है वो सिर्फ और सिर्फ पांच तत्व...

वेदसार शिव स्तोत्रम | Vedsaara Shiv Stotram by Adi Shankaracharya | Shiv Stotram |

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    शिव स्तुति मंत्र  पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम ।1। अर्थ :- जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं, जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।2। चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।3। जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं, श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं...

Lingashtakam | लिंगाष्टकम | Mahashivratri special | Shiva stuti | शिव स्तुति

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  लिंगाष्टकम लिंगाष्टकम भगवान शिव को अर्पित की जाने वाली प्रार्थना है | यह प्रार्थना भगवान शिव के प्रति आस्था, आज्ञाकारिता, निष्ठा और भक्ति की घोषणा है। इसमें भगवान शिव की महिमा और शिवलिंग की पूजा करने के लाभों को सूचीबद्ध किया गया है। श्रावण मास के दौरान प्रतिदिन की जाने वाली शिव पूजा के दौरान इसका जाप किया जाता है। Lingashtakam  ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्। जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम्। रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥२॥ सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्। सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥३॥ कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥४॥ कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्। सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥५॥ देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥६॥ लिंगाष्टकम  अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर...