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गया धाम की महिमा | पितृपक्ष | गयासुर की कहानी | पिंडदान गया में क्यों ?

  जय श्री गणेश  गया धाम की महिमा   पितृपक्ष  पिंडदान गया में क्यों ? पितृ का तर्पण   गयासुर की कहानी   पितृपक्ष  गया धाम की महिमा पितृ तर्पण    पिंडदान गया में क्यों ?  नारद मुनि ने सनत कुमारों से गया धाम के बारे में जानने की जिज्ञासा की तो सनत कुमार ने बतलाया की ब्रह्माजी जब सृष्टि का निर्माण कर रहे थे, जीव की उत्पत्ति कर रहे थे, उसी दौरान ब्रह्माजी ने एक असुर को प्रकट कर दिया | | उस असुर का नाम गयासुर था |     गलतियां सिर्फ हम सब ही नहीं करते ,केवल हमलोगों से नहीं होता है ब्रह्माजी से भी हो जाती है |   गयासुर  जन्म लेकर कोलाहल नमक पर्वत पर जाकर घोर तपस्या करने लगा | उसने तपस्या के दौरान स्वास तक रोक लिया | उसकी तपस्या जब चार्म सीमा पर पहुंची तो इंद्र देवता को डर लगने लगा |  इंद्र देवता  को  तो हर समय पद जाने का डर लगा रहता है | उन्होंने सभी देवताओं को साथ किया और चल दिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की नगरी | जिसने जन्म दिया वो भला क्या कर सकता है | वो सबको शिवजी के पास लेकर गए |...

पितृपक्ष | कौआ को खाना क्यों खिलाते है | पितृपक्ष में पुत्र का योगदान

    पितृपक्ष में क्या करना चाहिए पितृपक्ष कौआ को खाना क्यों खिलाते है  पितृपक्ष में क्या करना चाहिए पितृपक्ष कौआ को खाना क्यों खिलाते है  पितृपक्ष में क्या करना चाहिए?   पितृपक्ष में पित्तरों को  कुल के पुत्र, पौत्र को भोजन  जरूर  कराना चाहिए और तर्पण करना चाहिए | क्यूंकि उन्ही पितरों के कारण हमारी आत्मा को शरीर मिलता है माता - पिता मिलते है, कुल - परिवार मिलता है,  हमारा भरण - पोषण होता है |  ये सौभाग्य हमें अपने पितरों के कारण मिलता है |  हमारे यहां संतान को पुत्र कहते है | पुत्र का मतलब वो जो पितृ  को  से ताड़ दे |      कौआ को खाना क्यों खिलाते है? पितृ लोक के देवता है अर्यमा | अर्यमा  देवता  का वाहन है कौआ |  कौआ को भोजन देते है तो कौआ के माध्यम से  अर्यमा  देवता तक पहुँचता है और  अर्यमा  देवता हमारे पितरों को पुरे वर्ष भोजन कराते है | अर्यमा  देवता के वाहन को जब हम भोजन देते है तो वो  अर्यमा  देवता के द्वारा हमारे पितरों तक भोजन पहुंचता है | यही कारण...

पितृपक्ष | पितृपक्ष में क्या करना चाहिए | हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है | पितरों को तर्पण

 पितृपक्ष में क्या करना चाहिए   हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है    पितृपक्ष    पितरों को तर्पण  हमारे पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है    पितृपक्ष में क्या करना चाहिए पितृपक्ष में क्या करने से हमारे पितरों को ख़ुशी मिलती है ?   पितृ  पितृलोक से मुक्त होकर भगवान के धाम को  कैसे  जाते है? पितृपक्ष में क्या करने से हमारे पितरों को ख़ुशी मिलती है और वो पितृ लोक से मुक्त होकर भगवान के धाम को जाते है?  पितृपक्ष  सबका एक दिन समय आता है | अश्विन कृष्णपक्ष से आश्विन पूर्णिमा तक  १५ दिन हमारे पित्तरों का दिन होता है |  पित्तर हमारे पूर्वज है | उनकी बहुत कृपा है हमारे ऊपर | उन्होंने हमारी इस आत्मा को घर दिया | हमें कुल परिवार मिला | हमें माता - पिता मिले | जो हमारा भरण पोषण करते है | हमें कुल - परिवार सुख - दुःख और माता - पिता ये सब अपने पूरब जन्म के कर्मों से मिलता है |  इन दिनों में अपने पित्तरों को तृप्त करने के लिए उन्हें भगवान की कृपा से भोजन और जल अर्पित किया जाता है | उन तक इन चीजों को पहुँच...

तुलसी माला की महिमा | तुलसी की महिमा | Tulsi mala ki mahima

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जय श्री गणेश  जय श्री राम जय जय श्री राधे  गले में तुलसी माला पहनने की महिमा  Tulsi mala ki mahima  तुलसी माला की महिमा  Tulsi mala ki mahima  तुलसी माला की महिमा   तुलसी की महिमा   गले में तुलसी माला पहनने की महिमा   तुलसी माला की महिमा |  तुलसी की महिमा  वैष्णव जन अपने गले में तुलसी माला धारण करते है | इसका कारण है जो लोग तुलसी माला पहनते है वो पूरी तरह से भगवान विष्णु के आधीन होते है | वो मन कर्म और वचन से भगवान के आधीन होते है |  उन्होंने स्वयं को भगवान को अर्पित कर दिया है |  भगवान गोविन्द की तीव्र भक्ति  चाहिए  तो तुलसी की सेवा करनी चाहिए |  जिनके गले में तुलसी माला हो  उनके  नजदीक यमराज भी आने से डरते है |  उनको यमराज  नहीं छू सकते | यमराज भी तुलसी माला देखकर भाग जाते है कि ये तो वैष्णव है | इसको बैकुंठ जाना है इसे मैं स्पर्श नहीं कर सकता |  कबीरदास जी का एक प्रशिद्ध दोहा है -  मन कुत्ता दर - दर फिरे , दर - दर - दुर - दुर होय, एक ही दर - का होय रहे , दुर - ...

अनंत चतुर्दशी | Anant chaturdashi

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 जय श्री गणेश  जय जय श्री राधे  अनंत चतुर्दशी  Anant Chaturdashi  अनंत चतुर्दशी Anant chaturdashi भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी की नाम से जाना जाता है |  इस दिन अनंत  के रूप में श्री हरी विष्णु की पूजा, अर्चना और कीर्तन होता है | अनंत पद्मनाभ स्वामी भगवान विष्णु का ही शेष सयन मुद्रा में प्राकट्य है | शेष रूप में बनी शैया पर निद्रा मग्न भगवान श्री विष्णु |  अनंत का मतलब जिसका कोई अंत न हो |  जो व्यक्ति अनंत चतुर्दशी को विष्णु सहस्र नाम का पाठ करता है और व्रत रखता है उसकी सारी मनोवांछित  इच्छा पूरी होती है | इस का वर्णन धार्मिक ग्रन्थ महाभारत में है |  अनंत चतुर्दशी का व्रत सबसे पहले पांडवों ने श्री कृष्ण के कहने पर पूरी विधि का पालन करते हुए किया था |  पांडव श्री कृष्ण के भक्त थे | उनकी माता कुंती भगवान की भक्त थीं | पांडवों के पिता पाण्डु एक धर्मशील राजा थे | फिर भी पांडवों के जीवन में बहुत कष्ट आये | बचपन से ही दुर्योधन पांडवों को दुःख देने लगा था |  श्री कृष्ण ने पांडवों से कहा --- मैं आपलोगों को एक ...