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पलाश | पलाश के अद्भुत फायदे | पलाश का शरबत | पलाश से होली के रंग | Palas | Palash ke fayede | Palash se sharbat | Palash se rang | Palash se holi ke rang

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      पलाश  पलाश के अद्भुत फायदे   पलाश का शरबत   पलाश से होली के रंग  Palas   Palash ke fayede  Palash se sharbat  Palash se rang        Palash se holi ke rang         फगुनमा आयो सखी आज कुमकुम उरत आंगनमा | फगुनमा आयो सखी दोस्तों, जैसे शर्दी के मौसम के आने से पहले प्रतिदिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में एक महीना कार्तिक स्नान कर हम अपने शरीर को शर्दी के लिए तैयार करते है | वैसे ही गर्मी केआगमन से पहले प्रकीर्ति ने बहुत ही खूबसूरत तैयारी की हुई होती है | ठीक गर्मी के आने से पहले पृथ्वी पलाश के फूल से ढक जाती है | खूबसूरत रंगबिरंगे पलाश के फूल | इस फूल से खूबसूरत रंग तैयार किया जाता है | होली के त्योहार पर इसी पलाश के फूल का रंग सिर से डाल कर होली खेला जाने का पुराना प्रचलन रहा है | पलाश के अद्भुत फायदे  पलाश का फूल और पत्ता बहुत ठंडा होता है | इससे सिर से स्नान करने से पूरी गर्मी त्वचा को राहत मिलती है | इससे शरबत भी बनाया जाता है | कैसी भी तप्ति गर्मी हो इसका शरबत शरीर को ठंड...

पूजा की मूर्ति को कैसे विसर्जित करें | पूजा की खंडित मूर्ति का क्या करें | पुरानी तस्वीर को कैसे dispose करें

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  पूजा की मूर्ति को कैसे विसर्जित करें  पूजा की खंडित मूर्ति का क्या करें   पूजा की तस्वीर का क्या करें    पुरानी तस्वीर को कैसे dispose करें    Puja ki murti ka visarjan Bhagwaan ki khandit murti ya fir tasveer ka kya karein   How to dispose of old photographs    हमारे हिन्दू धर्म में अलग - अलग त्योहारों में मूर्ति पूजा का विशेष प्रचलन है। हम बहुत ही सम्मान के साथ अपने ईश्वर की मूर्ति घर लाते है।  उनकी प्राण प्रतिष्ठा करते है। उनकी पुरे हर्षोल्लास से पूजा पाठ करते है। फिर उत्सव समाप्त होने पर हम उनका विसर्जन भी करते है।   पुरे आर्यावर्त में मिट्टी और बालू से बनी मूर्ति को पूजा के लिए लाये जाने का प्रचलन है, वही सबसे शुद्ध माना जाता है।   हम सभी जानते है   हमारी   सृष्टि पांच तत्वों से निर्मित है। उन्ही पांच तत्वों से हम, हमारा पूरा समाज, हमारे आसपास का पूरा वातावरण, निर्मित है,और हम सभी जानते है इन सब के विलीन होने के तरीके। तो हम जिस भी चीज में प्राण डालते है वो सिर्फ और सिर्फ पांच तत्व...

वेदसार शिव स्तोत्रम | Vedsaara Shiv Stotram by Adi Shankaracharya | Shiv Stotram |

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    शिव स्तुति मंत्र  पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम ।1। अर्थ :- जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं, जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।2। चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।3। जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं, श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं...

Lingashtakam | लिंगाष्टकम | Mahashivratri special | Shiva stuti | शिव स्तुति

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  लिंगाष्टकम लिंगाष्टकम भगवान शिव को अर्पित की जाने वाली प्रार्थना है | यह प्रार्थना भगवान शिव के प्रति आस्था, आज्ञाकारिता, निष्ठा और भक्ति की घोषणा है। इसमें भगवान शिव की महिमा और शिवलिंग की पूजा करने के लाभों को सूचीबद्ध किया गया है। श्रावण मास के दौरान प्रतिदिन की जाने वाली शिव पूजा के दौरान इसका जाप किया जाता है। Lingashtakam  ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्। जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥१॥ देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम्। रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥२॥ सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्। सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥३॥ कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥४॥ कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्। सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥५॥ देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥६॥ लिंगाष्टकम  अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर...

तू खुद की खोज में निकल | लेखक : - तनवीर गाजी | Sri Tanveer Gazi ki rachna | Aurat ka wajud |

  लेखक : - तनवीर गाजी  तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे बजूद की आज समय को भी तलाश है |  जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ है, समझ न इन को वस्त्र तू   ये बेड़ियां पिघला के बना ले इनको शस्त्र तू तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे बजूद की  आज समय को भी तलाश है |  चरित्र जब पवित्र है तोह क्यों है ये दशा तेरी   ये पापियों को हक़ नहीं की ले परीक्षा तेरी | तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे बजूद की आज समय को भी तलाश है |  जला के भस्म कर उसे जो क्रूरता का जाल है   तू आरती की लौ नहीं तू क्रोध की मशाल है | तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे बजूद की  आज समय को भी तलाश है |  चूनर उड़ा के ध्वज बना गगन भी कपकाएगा, अगर तेरी चूनर गिरी तोह एक भूकंप आएगा | तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे बजूद की  आज समय को भी तलाश है | 

Sohar | Krishn janm sohar | Krishna bhajan | Krishnjanmashtmi geet, Devki ke koikh sa | कृष्णजन्म सोहर | कृष्णजन्माष्टमी गीत

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    कृष्णजन्म सोहर   कृष्णजन्माष्टमी गीत  Devki ke koikh sa  देवकी के कोखी से जनमल कृष्ण कन्हैया रे - 2 ललना रे विधि के लिखल संजोग यशोदा भेली मैया रे ! - 2 जेहल मे जननी के नोर देवकी के लाल दूर गेल रे -2   ललना रे सोचि के केलथि संतोष नेना के प्राण बचि गेल रे ! -2 पुलकित नन्द के दुआरि जनम लेल बालक रे -2 ललना रे देखू सखी रूप निहारि देखथि मैया अपलक रे ! -2 दीनघर बसन के दान कि संगे अन्न द्रव दान रे -2 ललना रे गोकुला मे नवल विहान बढ़ल नन्द-वंश मान रे ! - 2 सुनू सुनू माय यशोदा जीबहु पूत तोहर रे -2 ललना रे पलना मे डोलथि कन्हैया रचल शिव सोहर रे ! -2   Devki ke koikh sa

#Subhashitani, सुभाषितानि

Subhashitani सुभाषितानि "उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्"॥ "उत्साह" श्रेष्ठ पुरुषों का बल होता है |  "उत्साह" से बढ़कर कोई बल नहीं है |  "उत्साहित व्यक्ति" के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होता |  इसे हम सरल भाषा में समझ सकते है | 

#सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय

 सुभाषितानि   विद्या विवादाय धनं मदाय "विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परपीडनाय । दुर्जन को   "विद्या" मिले तो वो विवाद के लिए इस्तेमाल करता है,  "धन" घमण्ड करने के लिए  और  "शक्ति" दूसरों को परेशान और दुखी करने के लिए प्रयोग करता है । खलस्य: साधो: विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय" || जबकि दुर्जन के विपरीत सज्जन,  "विद्या" को ज्ञान के लिए,  "धन" को दान के लिए  और  "शक्ति" को रक्षा के लिए प्रयोग करते है । || हरी बोल ||  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय   #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सुभाषितानि | #विद्या विवादाय धनं मदाय  #सु...

कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन। Kabirdas ka doha | कबीर के दोहा |

कबीर के दोहा   कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन। जैसी संगति कीजिये, तैसो ही फल तीन।। स्वाति नक्षत्र में ओश की बून्द केले के पौधे पर पड़े तो  कपूर बन जाता है | सीप के मुँह में जाए तो मोती बन  जाता है और वही बून्द यदि साँप के मुख में जाए तो  विष बन जाता है |  प्रकीर्ति, स्वाभाव और संगती के  कारण एक ही चीज का प्रभाव अलग - अलग  लोगों  पर अलग अलग होता है |  https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/bhavyatam-bhagwat-geeta-bhagwat-geeta.html https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/11/aloe-vera-kanyaka-benefits-and-uses-of.html https://youtu.be/luCPkiGxKdI -------Awala ka achar https://mythoughts4goodlyf.blogspot.com/2021/04/subhashitani_10.html कबीर के दोहा कबीर के दोहा  स्वाति नक्षत्र में ओश की बून्द केले के पौधे पर पड़े तो  कपूर बन जाता है | सीप के मुँह में जाए तो मोती बन  जाता है और वही बून्द यदि साँप के मुख में जाए तो  विष बन जाता है | प्रकीर्ति, स्वाभाव और संगती के  कारण एक ही चीज का प्रभाव अलग - अलग...

शक्ति और क्षमा कविता | क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल | श्री रामधारी सिंह दिनकर

  शक्ति और क्षमा   कविता के रचनाकार -- श्री रामधारी सिंह दिनकर  क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा? क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम हुये विनत जितना ही दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही। अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो। तीन दिवस तक पंथ मांगते रघुपति सिन्धु किनारे, बैठे पढ़ते रहे छन्द अनुनय के प्यारे-प्यारे। उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से। सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि करता आ गिरा शरण में चरण पूज दासता ग्रहण की बँधा मूढ़ बन्धन में। सच पूछो, तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की। सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।   subhashitani | अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः   सुभाषितानि | संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च   palash ke fayade ...