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रूद्र का नाम शिव और शंकर कैसे पड़ा

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                                                          रूद्र का नाम शिव और शंकर कैसे पड़ा   आज मैं बहुत ही सूंदर एक पौराणिक घटना के बारे में लिखने जा रही हूँ | हो सकता है बहुत सारे लोगों को पता भी हो | रूद्र जिन्हे शिव-शम्भू ,महादेव और शंकर भी कहते है | उनका नाम शिव - शंकर कैसे पड़ा ?                                            बात पौराणिक है एक बार रावण हिमालय क्षेत्र में कुबेरपुरी के घर - घाट देखते हुए शरवन में पहुंच गया | शरवन सूर्य की धुप में सूर्य और अग्नि के सामान चमक रहा था | शरवन में कास इतना ऊँचा था की रावण को आगे की राह दिखलाई ही नहीं दे रही थी | रावण परेशान हो इधर-उधर देख ही रहा था कि रूद्र का सेवक नन्दी एक भयानक रूप बनाकर  उसके पास आया और पूछा - तू कौन है ? इस अग...

नवरात्री \विजयादशमी

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नवरात्री  दशहरा   विजयादशमी  जय माँ अम्बे भवानी  नवरात्री का पर्व  एक ऐसा पर्व है जिसे पूरे भारत वर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है |यह पर्व अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पहली तिथि से नवमी तिथि तक चलती है | सबसे पहले दिन लोग संकल्प लेकर कलश स्थापित करते है और पूरे तन मन से और बहुत ही श्रद्धा से नौ दिनों तक माँ की सप्तशती का पाठ करते है |कुछ लोग इन नौ दिनों मे रामायण भी पढ़ते है | कुछ लोग दुर्गा सप्तशती को तीन भागो मे बाँट कर पढ़ते है तो कुछ लोग पूरा सप्तशती के पाठ को हर रोज पढ़ते है - जिसको जैसा उचित लगता है करते है |परन्तु पूरा देश नव रात्रि के माहौल में सराबोर रहता है इन नौ दिनों तक | कुछ लोग समूह मे घर-घर जाकर गाना-बजाना भी करते है और सप्तशती के पाठ को कीर्तन की तरह गाते है |सब कुछ इन नौ दिनों तक बहुत ही खूबसूरती से होता है | ऐसा लगता है मनो माँ हमसब के बिच ही है |  दुर्गा सप्तशती की पुस्तक मे माँ   का समय -समय पर प्रकट होने की जो कथा है वो हम सब को निर्भय बनती है |वो हमें समझाती है कि यदि स...

रामायण और रामचरित मानस के रचयिता कौनहै? रामायण और रामचरित मानस, Ramayan, Ramcharitmanas

श्री गणेशाय नमः ॐ नमः शिवाय जय माँ अम्बे भवानी रामायण के रचयिता कौनहै रामचरित मानस के रचयिता कौन है रामायण और रामचरित मानस    श्री गणेशाय नमः ॐ नमः शिवाय जय माँ अम्बे भवानी रामायण के रचयिता कौनहै?  रामचरित मानस के रचयिता कौन है?  रामायण को कब रचा गया रामायण को किसने रचा?  रामचरितमानस को किसने, कब और क्यों रचा?  रामायण  कोई नयी चीज नहीं है हिन्दू धर्म  के लिए |     रामायण  का मतलब क्या होता है? रामायण का मतलब होता है जहाँ राम बसते है, निवास करते है | दूसरा है  "रामचरित मानस"  जिसका नामकरण श्री शिव - शम्भू ने खुद अपने ह्रदय  मे  किया है |  "रामायण" के रचयिता महर्षि वाल्मीकि है |  " श्री रामचरित मानस" के रचयिता गोस्वामी तुलसीदासजी है |    रामायण   बहुत सारे लोगो के द्वारा कहा सुना जाता रहा है|  महर्षि वाल्मीकि  ने नारद मुनि से सुना और  ब्रह्मा जी   की कृपा से रामायण को रचा| चतुर्मुख ब्रम्हाजी ने महर्षि वाल्मीकि के मुख से कुछ श्...

SWARG, स्वर्ग, अच्छे कर्म, पुण्य, पाप

  स्वर्ग    अच्छे कर्म पुण्य  पाप   क्या हम में से किसी ने स्वर्ग देखा है?  बड़े - बुजुर्ग, हमारे धर्म ग्रन्थ सभी कहते है अच्छे कर्म करो स्वर्ग जाओगे |  "गीता" मे भी कहा गया है "जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान", तो इसका मतलब ये है जो कर्म हम यहाँ कर रहे है वही वापस मिलने वाला है |  स्वर्ग और नरक सब हम अपने कर्म से अपने ही आप - पास बनाते है |   हमारे धर्मग्रन्थ हमे अपने आस - पास स्वर्ग बनाने के राह दिखाते है हमे मार्ग दर्शन करते है | स्वर्ग और नरक में रहना तो अपने हाथों में है |  हमें तय करना है कि  "गीता" में  दिया गया "भगवान कृष्ण" का संदेश या "रामायण"  में  "श्री राम और लक्षमण" के कर्म  से हम अपने आस - पास किस तरह से स्वर्ग का निर्माण करें |   हम अपने मन को फालतू के बातों में उलझाने के बदले अच्छे कर्म में लगाएं |     अच्छे कर्म के लिए महर्षि वेद व्यासजी ने पुराणों के माध्यम से कहा है -  "अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |  परोपकारः पुण्य...

डूबने को अभिमान | प्रेरणादायक कहानी | Motivational story

  डूबने को अभिमान   प्रेरणादायक कहानी     एक मूर्तिकारऔर उसके बेटे की कहानी  एक   मूर्तिकार  था | वो बहुत अच्छी -अच्छी  मूर्तियाँ बनता था | उसकी  इस कला के लोग कायल थे | दूर-दूर से लोग उसके पास मूर्ति खरीदने आते और उसकी मूर्तियों को देखकर बहुत प्रभावित होते थे | उसकी मूर्ति की माँग  बहुत थी सो उसका बेटा उसकी मदद करता था |   मूर्तिकार बेटे को  जैसा सिखाते  बेटा मन लगाकर  सब सीखता, समझता और निखरता चला गया |  मूर्तिकार उसकी गलतियों को बतलाता और वो उसे  सुधारता | इसतरह से अपने पिता की इस हुनर को  बेटे  ने अपनी पूरी लगन से सीख लिया |  बेटा भी बहुत अच्छी मूर्ति बनाने लगा | मूर्तिकार से ज्यादा लोग अब उसके बेटे की मूर्ति की सराहना करते थे और खरीदते | मूर्तिकार को बहुत ख़ुशी होती थी | मूर्तिकार अब बूढ़ा हो चला था | उसके हाथ, काम में बारीकियां नहीं ला पातीं थीं | पर वो खुश था  कि  उसका बेटा काम को बखूबी अंजाम दे रहा है |  मूर्तिकार बेटा...

Beti Bachao Beti Padhao

 बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ आज कल  बेटियों के ऊपर ना जाने कितनी योजनाएं बनाई जा रही है ,ना जाने कितने तरह - तरह के गाने बन रहे है । चित्रपट भी बनाये जा रहे है। इन सब से क्या लगता है कुछ बदलाव आ जायेगा? मै तो कहती हूँ कुछ नहीं होने वाला है इनसब से। अगर बदलाव लाना है तो पहले सामाजिक कुरितियों को जड़ से खत्म करना होगा। एक साधारण घर - परिवार में जिस दिन बेटी जन्म लेती है उस दिन सन्नाटा छा जाता है। बल्कि  बेटी के होते ही  परिवार वाले माँ को ही कोसने लगते है।  अगर वैज्ञानिक तौर पर देखे तो माँ अधिक प्रभावशाली होती है तो बेटी का जन्म होता है। तो परेशानी कहा है बाप में या माँ में ? फिर माँ क्यों निशाने पर होती है। माँ को मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है। ये सिर्फ अनपढ़ समाज तक ही सिमित नहीं है मैंने पढ़े लिखे लोगो को भी  बेटे की आस में माँ को प्रताड़ित करते देखे है।  जिस दिन बेटी जन्म लेती है उसदिन से ही समझ लीजिये वो अपने माँ - बाप के लिए परेशानी ले कर पैदा होती है।बचपन से ही बेटियों को सम्हालकर,संस्कारऔर मर्यादा के साथ बड़ा किया जाता है |  ऐसी ...

Gurukul | गुरुकुल

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  गुरुकुल प्राचीन काल में हमारे देश भारत में गुरुकुल में बच्चे पढ़ा करते थे। वहाँ भी हर विषय कि पढ़ाई होती थी। शिक्षा जीवनशैली पर आधारित थी। वहाँ बच्चों का हर तरह से ,कह सकते है चहुतरफा - शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता था। उस वक़्त बच्चे पाँच वर्ष की उम्र में ही गुरुकुल जाते थे। उन्हें उसी उम्र से अपने सारे काम स्वयं  करने होते थे। सारे शिष्टाचार सीखा  दिये  जाते थे। ज्यादातर शिक्षा प्रायोगिक हुआ करती थी  ,इसकारण बच्चे गुरुकुल में बहुत  मन लगाकर अध्ययन करते थे । साथ ही उन्हें अपने पसंद के विषय चुनने में भी आसानी होती थी।बच्चे को अपने पसंद की शिक्षा पूरी करने की छूट थी।उनकी  परीक्षा  हर प्रकार से हुआ करती थी । जो बच्चा जिस लायक होता था उस विषय में वो अपने आप को निपुण बनाता था ।ऐसा कभी नहीं होता कि सारे बच्चे एक सामान बुद्धि वाले हों , हाँ पर इसतरह के विद्या अर्जन में बच्चे स्वाबलंबी और संस्कारी जरूर बन जाते थे। उनके माँ बाप को आज के माँ-बाप की तरह पीछे-पीछे चलना नहीं पड़ता था।कितने वीर ,पराक्रमी और विदुषी हुआ...