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"स्थानं प्रभावं न बलं प्रभावं " | Sthanam prabhavam na balam prabhavam | पद्मपुराण | Padmpuran

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   ॐ    श्री गणेशाय नमः  "स्थानं प्रभावं न बलं  प्रभावं  "|  पद्मपुराण "स्थानं प्रभावं न बलं  प्रभावं  "  पद्मपुराण   पद्मपुराण     पद्मपुराण में वर्णन है   एक बार शिव शम्भु और भगवान् विष्णु एक साथ बैठ कर किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे | शिवजी के गले का सांप भगवान् विष्णु के वाहन गरुड़ को कभी सिर पे कभी बगल में फुफकार मार कर परेशान करने लगा |     श्री रामजी के चौदह निवास स्थान गरुड़ जी बहुत परेशान हो रहे थे | थोड़ी देर तो उन्होंने सहन किया | फिर गरुड़ जी से रहा नहीं गया | उन्होंने सांप को आँख दिखा कर कहा तेरे जैसे हजारों सांप को मैं एक सेकंड में खा लूँ | तुम इस भ्रम में मत रहना की तू बहुत बलवान है इस कारण परेशान कर रहा है  और मैं कमजोर हूँ  तो तुम्हे सहन कर रहा हूँ |   अधिक मास | पुरुषोत्तम मास | मलमास क्या है  मैं गरुड़ हूँ मेरे नाम से सांप डरते है | मैं एक सेकंड में हजारों सांप खा जाऊं | तुझे भी खा सकता हूँ लेकिन क्या करूँ तू  शिवजी के गले में सुशोभित है इस कारण तू बच रहा है |...

श्री रामजी के चौदह निवास स्थान | श्री राम-वाल्मीकि संवाद - Ram Katha | Ramayan

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 || ॐ||  श्री गणेशाय नमः  ॐ नमः शिवाय  श्री रामजी के चौदह निवास स्थान  श्री राम-वाल्मीकि संवाद - Ram Katha श्री रामजी के चौदह निवास स्थान  श्री राम-वाल्मीकि संवाद - Ram Katha   जय जय  श्री  राम    भगवान राम, सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ जब वन  गमन के लिए गए थे, एक दिन वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में गए थे | उनसे भगवन राम ने पूछा की मुझे रहने के लिए कोई अच्छा स्थान बतलाइए जहां हम तीनो रह सके |   महर्षि वाल्मीकि तब मुनिश्रेष्ठ ने ऐसे 14 स्थान बताए।     जिसे ऋषि ने भगवान के लिए बतलाया किन्तु वो परोक्ष रूप से हम भगवान के भक्तों के लिए है |    उन स्थानों का संक्षेप में विवरण इस प्रकार है-  वाल्मीकि ऋषि कहते है    "स्थानं प्रभावं न बलं प्रभवं" पद्मपुराण पूछेहु मोहि कि रहौं कहं, मैं पूछत सकुचाउं। जहं न होउ तहं देउ कहि, तुम्हहिं दिखावउं ठाउं।।  प्रभु, आपने पूछा कि मैं कहां रहूं? मैं आपसे संकोच करते हुए पूछता हूं कि पहले आप वह स्थान बता दीजिए, जहां आप नहीं हैं। (आप सर्वव्या...

अधिक मास | पुरुषोत्तम मास | मलमास क्या है | Adhikmas | Malmas | Purushotam mas

अधिक मास   पुरुषोत्तम मास     ॐ  श्री गणेशाय नमः    अधिक मास   पुरुषोत्तम मास    मलमास    काल की गणना वैदिक केलिन्डर के अनुसार सूर्य और चंद्र की गति से होता है | सूर्य और चंद्र चलायमान होता है | चन्द्रमा सूर्य से धीमे चलता है |  गणना के अनुसार एक वर्ष में चन्द्रमा सूर्य की गति से १० दिन पीछे रह जाता है | इसी तरह चन्द्रमा दूसरे वर्ष भी १० दिन पीछे रह जाता है | तीसरे वर्ष भी १० दिन पीछे रह जाता है | वैदिक केलिन्डर में सूर्य और चन्द्रमा की गति को तीन साल में एक बार फिर से स्थापित कर एक साथ किया जाता है | जिससे तीन वर्ष में एक अधिक मास बन जाता है |  ऐसा शास्त्र में वर्णन है कि एक बार सब मास आपस में चर्चा करने लगे कि किसकी क्या महिमा है |  सभी मास ने अपनी महिमा बतलायी | सभी माह में कुछ न कुछ विशेष होता है |  जैसे चैत्र मास श्री रामचंद्र भगवान का जन्म | भाद्रपद में श्री कृष्ण भगवान का जन्म |  कार्तिक मास में कृष्ण ने गोवर्धन उठाये | इस तरह करीब - करीब हर मास मे भगवान् की कुछ न कुछ महिमा है | ले...

हिंदी देशभक्ति कविता | रहूं भारत पे दीवाना | Ram Prasad Bismil | राम प्रसाद बिस्मिल | Rahu Bharat Pe Diwana

 मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना श्री राम प्रसाद बिस्मिल रचित कविता मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना  हिंदी देशभक्ति कविता   रहूं भारत पे दीवाना   Sri Ram Prasad Bismil   राम प्रसाद बिस्मिल  रचित कविता राम प्रसाद बिस्मिल क्रान्तिकारी धारा के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे | राम प्रसाद बिस्मिल अपनी कविता राम और अज्ञात नाम से लिखते थे।  राम प्रसाद बिस्मिल को 30 वर्ष की आयु में फाँसी दे दी गई। वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य थे।    राम प्रसाद बिस्मिल एक कवि, शायर व साहित्यकार भी थे।   मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना  न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना  लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना लगें इस...

श्रीमद्भागवत गीता | हमारे शरीर का निर्माण कैसे हुआ | जीवात्मा के निर्माण का रहस्य | शरीर को चलाने वाले दस तत्व

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  श्रीमद्भागवत गीता    हमारे शरीर का निर्माण कैसे हुआ   जीवात्मा के निर्माण का रहस्य  शरीर को चलाने वाले दस तत्व  Parmatma प्रत्येक जीव का  निर्माण ब्रह्माजी ने किया |  जीव  शरीर  पांच स्थूल तत्वों से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है साथ ही साथ  शरीर के निर्माण में चार  सूक्ष्म तत्व हैं -- मन, बुद्धि, अहंकार और आत्मा | इन नौ तत्वों से ब्रह्माजी ने  जीव शरीर  तो बनाया, लेकिन तब भी शरीर कार्यान्वित नहीं हुआ |  ब्रह्मा जी भगवान् के पास गए | भगवान् विष्णु को कहा -- प्रभु   मैंने बहुत मेहनत से जीव शरीर बनाया लेकिन वो चलायमान नहीं हो रहा | क्या करूं, उपाय बतलायें |  तब भगवान विष्णु ने अपना विस्तार करोड़ों स्वरुप में किया | करोड़ों स्वरुप में फैलकर परमात्मा के रूप में प्रत्येक जीव के हृदय में प्रवेश किये |  जब परमात्मा का जीव के हृदय में प्रवेश हुआ,  तो परमात्मा से आत्मा को शक्ति मिली और आत्मा से पुरे शरीर में शक्ति मिली तब शरीर चलायमान हुआ | शरीर को कार्यान्...

देवी अनसूया | पतिव्रता धर्म | पतिव्रता स्त्री की ताकत | भगवान दत्तात्रय का जन्म | पतिव्रता स्त्री

  देवी अनसूया पतिव्रता धर्म  पतिव्रता स्त्री की ताकत भगवान दत्तात्रय का जन्म  पतिव्रता स्त्री    देवी अनसूया  पतिव्रत धर्म   पतिव्रता स्त्री की ताकत  भगवान दत्तात्रय का जन्म  पतिव्रता स्त्री    एक दिन नारद मुनि वैकुण्ठ में आते है और लक्ष्मी जी के पास गए | लक्ष्मीजी भगवान के पाऊं दबा रही थीं | नारदजी ने कहा क्या करते रहती हैं, जब आता हूँ भगवान के पाऊं दबती रहती हैं | सेवा करना है तो ठीक से कीजिये | लक्ष्मीजी ने कहा और कैसे सेवा करूँ?   नारद मुनि ने कहा धरती पर जाओ देखो देवी अनसुइया देखो अपने पतिअत्रि ऋषि की कितने सुन्दर से सेवा करती है | वो ऐसी पतिव्रता नारी है कि उसका नाम तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो रहा है |  देवी अनसुइया कि नारद जी ने इतनी प्रसंसा कि कि देवी लक्ष्मी को रहा नहीं गया |  लक्ष्मी जी ने माँ पार्वती और ब्रम्हाणी के साथ बात की | कहा हमलोगों के होते कोई और प्रसिद्ध हो रही है ये सहन नहीं हो रहा | यदि वास्तव में अनसुइया पतिव्रता है तो हम उसकी परीक्षा लेंगे | तीनो ने विचार किया की क्या करे?...

Srimad Bhagwat Geeta, भगवान कृष्ण कहाँ निवास करते है, कृष्ण कहाँ रहते है | श्रीमद्भागवत गीता

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  श्रीमद्भागवत गीता    भगवान कृष्ण कहाँ निवास करते है? कृष्ण  कहाँ रहते है?   अरबों - खरबों जीवों  तक परमात्मा कैसे पहुंचते हो? Arjun Krishna samwad अर्जुन ने भगवान् से पूछा - हे कृष्ण आप कहाँ रहते हो ?  इस ब्रह्माण्ड में रहने वाले अरबों खरबों जीवों के हृदय तक आप कैसे पहुंचते हो ? वराह पुराण में कृष्ण कहते हैं -   गीताश्रये अहम् तिष्ठामि गीता मे च उत्तमं गृहं  गीता ज्ञानं उपाश्रित्य त्रिलोकान् पालयामि अहम्  मैं भगवत गीता में निवास करता हूँ | भगवत गीता ही मेरा सबसे उत्तम घर हैं |  गीता के ज्ञान से ही मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ |  भगवान व्यास देव कहते हैं गीतायाः पुस्तकं यत्र, यत्र पाठ प्रवर्तते   तत्र सर्वाणि तीर्थानि प्रयागानी तत्र वै |  जहां भगवत गीता होती हैं जहां भगवत गीता का पाठ होता हैं  वहाँ   सारे तीर्थ तो आ ही जाते है | तीर्थों का राजा प्रयाग भी वहाँ आ जाते है |   यत्र गीता विचारश्च पठनं पाठनं श्रुतं |  तत्राहम् निश्चितं पृथ्वी निवसामी सदैवहि ||    भ...

श्री विष्णु ध्यान मन्त्र अर्थ सहित | Sri Vishnu dhyanam | शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

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 || ॐ||  श्री गणेशाय नमः  ॐ नमः शिवाय    श्री विष्णु ध्यान मन्त्र     Sri Vishnu dhyanam    Jai jai Sri Krishna शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं  विश्वाधारं गगनसदृशं   मेघवर्णं  शुभाङ्गम् |  लक्ष्मीकान्तं  कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं   वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथं || अर्थ    शान्ताकारं - जिनकी आकृति शांत है,  भुजगशयनं - जो शेषनाग की शय्या पर सोये हुए है पद्मनाभं   --  जिनकी नाभि में कमल है  सुरेशं -- जो सभी देवी - देवताओं के भी ईश्वर है सम्पूर्ण जगत के आधार है      गगनसदृशं  - आकाश के सामान सर्वत्र व्याप्त है  मेघवर्णं  - नील मेघ के सामान जिनका वर्ण है  शुभाङ्गम् ---  बहुत सुन्दर जिनके अंग है  लक्ष्मीकान्तं - लक्ष्मीपति   कमलनयनं -- कमल के सामान नेत्र वाले योगिभिर्ध्यानगम्यं ---  जो योगियों द्वारा ध्यान करके पाए जाते है  भवभयहरणं --  जो जन्म मरण रूपी भय का नाश करते है  सर...