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मैथिलि विवाह गीत | Vivah geet

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    मैथिलि विवाह गीत    मंगल आज जनकपुर, अति मनभावन हे |  आज मंगल दूल्हा - दुल्हिन, परम सुहावन हे |  आहे मंगल बाजन बाजै, सखी सब मंगल हे |  आहे गावथी मंगल गीत, जनक घर मंगल हे |  आहे देवगन फूल बरसावथी, सुर सब मंगल हे |  आहे सियाजी के आजु छन विवाह, जनक घर मंगल हे |  आहे मंगल श्री राम दूल्हा सिया भेली दुल्हिन हे |  आहे मिथिला आजु सुमंगल, घर - घर मंगल हे |  मंगल आज जनकपुर, अति मनभावन हे |

Pradosh Ashtakam | Shiva stuti

 प्रदोषस्तोत्राष्टकम् [Pradosh Ashtakam] सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रवीमि सारं ब्रबीम्युपनिषद्ददयं ब्रवीमि संसार मूल्बणमसारमवाप्य जन्तो: सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे, ये नाचितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये। एतत्कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्ते, जन्मजन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः॥ ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य, कुर्वन्त्यनन्यमनसांऽघ्रिसरोजपूजाम्‌ । नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र सौभाग्यसम्पदधिकास्त इहैव लोके ॥ कैलासशैवभुवने त्रिजगज्जनिनित्रीं गौरीं निवेश्य कनकाचितरत्नपीठे । नृत्यं विधातुमभिवांछति शूलपाणौ देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे॥ वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत्पद्मजस्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता । विष्णुः सान्द्रमृदंङवादनपयुर्देवाः समन्तात्स्थिताः, सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपातम्‌ ॥ गन्धर्वयक्षपतगोरग-सिद्ध-साध्व- विद्याधराम रवराप्सरसां गणश्च । येऽन्ये त्रिलोकनिकलयाः सहभूतवर्गाः प्राप्ते प्रदोष समये हरपार्श्र्वसंस्थाः ॥ अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः । तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीद...

शिव शम्भू के स्वरुप का मतलब

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                                                      शिव शम्भू के स्वरुप का मतलब                                                 आइये शिव शम्भू के स्वरुप के बारे मे जाने                                                जटा पे चन्द्रमा विराजित है, और उससे गंगा निकल रही है, गले मे सर्प की माला है, कंठी के ऊपर विष धरा हुआ है और कमर पे बाघम्बर को लपेटे हुए है, साथ मे त्रिशूल भी है | शिव शम्भू का स्वरुप, ये दर्शाता है की जो भी व्यक्ति घर का चन्द्रमा बन के रहेगा खाश कर घर का सबसे बड़ा को चन्द्रमा बनकर रहना चाहिए,  चन्द्रमा ज्ञान देने वाला होता है | घर के बड़े बुजुर्...

swastik

                                                                                                                                            

जीवित पुत्रिका व्रत | Jiutiya vrt | Jivit putrika vrt

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                                                          जीवित पुत्रिका व्रत                                                           ॐ गण गणपतयै नमः                                                              जय माँ अम्बे भवानी                                                  जीवित पुत्रिका व्रत  अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाई जाती है | जीवित पुत्रिका व्रत महाराष्ट्र में श्रावण माह...

शिष्टाचार | Sanskar | संस्कार

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बच्चों में अच्छे संस्कार बचपन से डालें संस्कार कैसे बनते है  अच्छे संस्कार, शिष्टाचार  संस्कार का मतलब शुद्धिकरण होता है | संस्कार सक्षम, स्वाबलंबी बनाता है |  संस्कार का मतलब वो व्यवहार जो स्वाबलम्बी बनने में मदद करते है |  वैसे तो एक बच्चे को ५ वर्ष की उम्र से संस्कार डालना शुरू हो जाता है | लेकिन एक बच्चा जब से बातों को समझने लगता है तब से उनमे संस्कार और व्यवहार डालना शुरू कर देना चाहिए |   सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक क्या करना और क्या नहीं करना ये बच्चों को कर के सीखना शुरू कर देने से बच्चा उसे ग्रहण करता चला जाता है | बच्चा जो देखता है वो खुद ही करने लगता है | इस लिए उसे हम सब सीखा सकते है |  बच्चे गीली मिट्टी के समान होते है | उन्हें  हम  जैसा चाहे ढाल सकते है |  पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे | हमारे साथ हमारे दादाजी, दादीजी, चाचाजी, चाचीजी, भाई - बहन सब रहते थे | परिवार में हर काम हम अपने बड़ों को देखकर सीख जाते थे | कैसे किसके साथ रहना, किसके साथ कैसे व्यवहार करना, अभिवादन करना - सब हम अपने परिवा...

सीता - राम की पहली नजर में, Sri Ramcharitmanas

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सीता - राम की पहली नजर में श्री रामचंद्र जी के द्वारा सीताजी की खूबसूरती का वर्णन स्वयंबर से पहले सीताजी सखियों सहित गौरी पूजन करने गयीं | उस समय राम और लक्ष्मण दोनों भाई भी अपने गुरु की पूजा के लिए बगिया से फूल तोड़ने गए थे | उनकी नजर सीताजी पर पड़ी और टिकी ही रह गयी | उनकी खूबसूरती को रामजी देखते ही मंत्रमुग्ध हो गए |   संध्या का समय हुआ | संध्या वन्दना के समय उनकी नजर पूर्व दिशा में उदित सूंदर चन्द्रमा पर पड़ी | श्री राम जी ने चन्द्रमा की तुलना सीताजी के मुख से किया और बहुत खुश हुए | फिर उनके मन में आया यह चन्द्रमा सीताजी के मुख के सामान नहीं हो सकता | एक तो खारे समुद्र में इसका जन्म हुआ है और विष इसका भाई है | दिन मे तो चन्द्रमा शोभाहीन और निस्तेज रहता है, साथ ही काला दाग भरा है | चन्द्रमा सीताजी के मुख की बराबरी नहीं कर सकता | ये घटता बढ़ता भी है जिसके कारण बिरहिनि स्त्रियों को दुःख पहुँचता है | राहु इसे ग्रस लेता है | कमल का बैरी है | इस चाँद में तो बहुत सारे अवगुण है इसका सीताजी के मुख से बराबरी करना अनुचित है | सीताजी की खूबसूरती में रामजी ऐसे मंत्रमुग्...

लक्ष्मण -परशुराम संवाद | Lakshman - Parshuram Samwad

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लक्ष्मण -परशुराम संवाद ॐ जय श्री गणेश जय शिव शम्भू जय श्री राम रामनवमी के पावन उत्सव पर रामायण का ये प्रसंग वास्तव में रामायण तो श्री शम्भु की आज्ञा से तुलसीदासजी ने लिखा था | ताकि श्री हरी के श्री राम रूपी अवतार को जन मानस के सामने लाया जाए, जिससे जन मानस अपनी जीवन को सही तरीके से सुख पूर्वक जी सके | राजा जनक के आमंत्रण पर महर्षि विश्वामित्र अपने साथ श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मणजी को जनकपुरी में सीता के स्वयंबर को दखने लेकर गए थे | जब कोई भी आमंत्रित राजा महाराजा ने शिव धनुष नहीं तोड़ा तो जनकजी और वहाँ उपस्थित सभी नगरवासी में हल - चल मच जाती है | सभी लोग राजा के लिए गए प्रण से चिंतित हो जाते है सब को लगने लगता है की अब सीता की शादी असंभव है | तभी लक्ष्मण उठ खड़े होते है और भरी सभा को पुरे गर्व से सम्बोधित करते हुए आश्वासन दिलाते है कि ये धनुष मेरे भ्राता तो खेल खेल में तोड़ देगें | श्री राम को बहुत कोमल और कम उम्र का जान कर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये संभव हो सकता है | तभी विश्वामित्र मुनि ने श्री रा...