सुंदरकांड श्लोक - भाग १, तुलसीकृत श्री रामचरितमानस, पञ्चम सोपान
ॐ श्री गणेशाय नमः सुंदरकांड पञ्चम सोपान श्लोक शान्तं शाश्वतं प्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रम्हाशम्भूफणीन्द्रसेव्यमनीशं वेदांतवेद्यं विभुं | रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देSहम् करुणाकरं रघुवरं भुपालचूड़ामणिम || शांत, सनातन[जिसका आदि - अंत नहीं है] ,अप्रमेय [जिसका प्रमाण नहीं है], निष्पाप [बिना पाप का], परमशान्ति देनेवाला, ब्रम्हा, शम्भू और शेषजी के द्वारा हर वक़्त ध्यान किये जाने वाला, वेदांत [ब्रम्हविद्या] के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले समस्त पापों को हरनेवाले, करुणाकी खान रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलानेवाले जगदीश्वर की मैं वंदना करती हूँ | नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेSस्मदीये सत...