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chhath geet | छठ गीत | सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ हे घूमइह संसार, आन दिन उगइह हो दीनानाथ आहे भोर भिनसार...

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  छठ गीत  सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ हे घूमइह संसार, आन दिन उगइह   हो दीनानाथ आहे भोर भिनसार...   आजु के दिनवा हो दीनानाथ हे लागल येती बेर , हे लागल येती बेर,  हे लागल येती बेर।   बात में भेटिये गेल गे अबला, एकता बाँझिनिया।   बालक दियैते गे अबला -- २  हे लागल येती बेर  - २  बात में भेटिये गेल गे अबला एक टा अंधरा पुरुष अखिया दियैते रे अबला हे लागल येती बेर  सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ हे घूमइह  संसार, आन दिन उगइह  हो दीनानाथ आहे भोर भिनसार. आजु के दिनवा हो दीनानाथ हे लागल येती बेर , हे लागल येती बेर हे लागल येती बेर।  

Hair care tips in ayurved | BEST HAIR CARE TIPS | बालों की देख - भाल | How to maintain healthy hair | Beneficial tips of hair care

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  HAIR CARE  बालों को देख - भाल    बालों के झड़ने के बहुत सारे कारण होते है | Anemia होने से, किसी धातु की शरीर में कमी होने से, शरीर में आयरन, प्रोटीन, मिनरल्स की कमी से भी बालों का झड़ना शुरू हो जाता है इस लिए कारण को जानना बहुत जरुरी है |  आयुर्वेद में किसी भी परेशानी को जड़ से ख़त्म करने की ताकत होती है | क्यूँकि वहाँ कारण पर काम होता है |  आयुर्वेद हमें प्रकीर्ति से जोड़कर हमारे पंचतत्वों को शरीर में सामंजस्य बनाकर हमारे शरीर की प्रकीर्ति को जानकर तब हमें पूर्ण  स्वास्थ  देता है |   जैसे कुछ उदाहरण देती हूँ --  बालों के जड़ो में दाने हो जाते है तो पित्त की परेशानी होती है, तो हमें 50 ml नारियल तेल में, 30 ml निम्बू का रस, 30 ml नीम का रस मिलाकर तेल तैयार करते है और उसे अपने बालों में लगते है तो बालों की ये परेशानी दूर हो जाती है | साथ ही साथ पित्त वर्धक खाना का त्याग भी कर दे तो बहुत जल्दी इस परेशानी से निकल आते है |  बाल बहुत झड़ते है तो -- काला तिल का चूर्ण  + भृंगराज का चूर्ण + आवला का चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलकर...

chhath geet | छठ गीत

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 छठ गीत   बरतीन के अंगना में, केरवा के रे गाछ बरतीन के अंगना में,केरवा के रे गाछ | घौद काटे गैलन हे परवैतिन, बलकवा धइले रे बाँस घौद काटे गैलन हे परवैतिन,बलकवा धइले रे बाँस | छोर छोर आ रे बलकवा,  हमरो दाहिन बाँस  छोर छोर आ रे बलकवा, हमरो दाहिन बाँस | होगइले अरगावा के बेरिया केरवा लेई हम जाईब होगइले अरगावा के बेरिया केरवा लेई हम जाईब | 

हवन में आहुति देने में स्वाहा क्यों कहते है | स्वाहा | Swaha | Hawan - swaha

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   "हवन में आहुति देने में स्वाहा क्यों कहते है "? "स्वाहा "  हमारे हिन्दू संस्कृति में किसी उत्सव में  या  कोई नया काम शुरू करते है तो पूजा करते है उसमें हवन करते है |  हवन हमारे आस पास के वातावरण को शुद्ध करता है |  अग्नि में जो भी सामग्री से आहुति दी जाती है वो सब आयुर्वेदिक होता है और उसके अग्नि में जाने से पूरा वातावरण शुद्ध होता है |  जहाँ तक हवन का धुंआ जाता है पूरा वातावरण शुद्ध, सुगन्धित, कीटाणु और विषाणु रहित हो जाता है हवन का ये सबसे बड़ा फायदा है |  इसलिए कहा जाता है हवन से वातावरण रोग मुक्त हो जाता है |   जब हम हवन करते है तो मंत्रोच्चार भी करते है | मंत्रोचार में तो इतनी क्षमता होती है कि वो  केवल वातावरण ही नहीं अपितु   मन, आत्मा  को  भी  शुद्ध करता है |  हवन में आहुति देने में स्वाहा क्यों कहते है हम जब देवी के अर्गलास्त्रोत्र पढ़ते है तो उसमे आता है  --  "ॐ जयंती मंगला काली भद्र काली कपालिनी दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा, नमस्तुते"||   इस मंत्र में जो भी न...
  नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को। संभलो कि सुयोग न जाय चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को। जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को नर हो न निराश करो मन को। निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तजो निज साधन को नर हो, न निराश करो मन को। प्रभु ने तुमको कर दान किए सब वांछित वस्तु विधान किए तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो फिर है यह किसका दोष कहो समझो न अलभ्य किसी धन को नर हो, न निराश करो मन को। किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं जन हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के फिर दुर्लभ क्या उसके जन को नर हो, न निराश करो मन को। करके विधि वाद न खेद करो निज लक्ष्य निरन्तर भेद कर...

सप्तपदी | सात फेरों के सातों वचन |Vivah sanskar

 सप्तपदी | सात फेरों के सातों वचन |Vivah sanskar  सात फेरों के सातों वचन प्यारी दुल्हनिया भूल न जाना |  प्यार का एक मंदिर है मन,  मन में मूरत सजन की बसाना |  सनातन धर्म में विवाह एक संस्कार है लेकिन दूसरे धर्मों में विवाह एक समझौता होता है | संस्कार भ्र्ष्ट  हो सकता है लेकिन कभी टूटता नहीं है  यही कारण है की सनातन धर्म के किसी भी धर्म ग्रंथ या शास्त्र में विवाह टूटने जैसे कोई शब्द तक नहीं है |  परन्तु समझौता टूटता है और तोड़ा जा सकता है |  जबकि दूसरे धर्मों में devorce , तलाक अदि जैसे शब्द है | हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लिए जाते है जिन्हे सप्तपदी कहते है | सप्तपदी के सातों वचन वधु अपने वर से मांगती है | यही वचन है जो पति पत्नी के दाम्पत्य जीवन को खुशहाल और सफल बनता है | दोनों के जीवन में कभी कोई बाधा नहीं आती |   ये सात वचन है  पहला वचन:-  वधु अपने पहले वचन में कहती है कभी आप तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना | कोई व्...

योग और प्राणायाम

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योग और प्राणायाम   ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥   ॐ   सह   नाववतु  । सहनौ भुनक्तु |  सह वीर्यं करवावहै |  तेजस्वि नावधी तमस्तु मा विद्विषावहै |  || ॐ||  असतो माँ सद्गमय |  तमसो माँ ज्योतिर्गमय |  मृत्यो माँ अमृतं गमय |  ॐ  शांतिः, शांतिः, शांतिः ||  आज घर - घर में योग और प्राणायाम किया जाता है | योग शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने की सहज आध्यात्मिक प्रक्रिया है |  आज सबको पता है योग अभ्यास हमारे शरीर के सारे अंग प्रत्यंग को सुचारु रूप से चलाने के लिए बहुत जरुरी है और प्राणायाम हमे हमारे प्राण वायु से परिचय करवाता है जो हमारे जीवन का आधार है |  हम हर रोज अपनी दिनचर्या में से १ घंटा भी समय निकाल ले और योग कर लेते है तो शरीर के सारे थके कल पुर्जा में पुनः जान आ जाता है |  किन्तु योग और प्राणायाम को किसी योग शिक्षक से सीखकर करना सही होता है | किसी भी अभ्यास को शुरू करने और अंत करने की सही प्रक्रिया जाने वगैर ...

तुलसी को जल अर्पित करने का प्रार्थना

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                                                                                     तुलसी को जल अर्पित करने का प्रार्थना                                                    तुलसी तुलसी नारायण तुम्ही तुलसी वृन्दावन तेरे सिर मैं डालूं जल       अंत समय देना मुझे स्थान  |

दीपम ज्योति नमः स्तुते | Dipam Jyoti Namostute | Dipam vandana | Dipamvandana | Dipakprathna

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      दीपम ज्योति प्रार्थना      हम सभी अपने घरों में हर रोज सुबह - शाम दीपक जलाते है | दीप अग्नि का रूप है, दीपक अपनी ज्योति से चारों ओर प्रकाश फैलता है और अंधकार को हर लेता है,हमें सही दिशा प्रदान करता है आरोग्य बनाता है | हमारे चारों ओर स्वच्छ वातावरण प्रदान करता है |  दी प  प्रकाश हर तरह के रोगाणुओं को नष्ट करता है और वातावरण स्वच्छ करता है | जिससे हम स्वस्थ और सुखी रहते है | कहते है जहाँ दीपक जलता है वहाँ लक्ष्मी का वाश होता है |  किसी भी शुभ काम का आरम्भ हम दी प जला कर करते है |     शुभम करोति कल्याणम, आरोग्यम धन सम्पदा |    शत्रु बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोःस्तुते |   दीप ज्योति परम ब्रम्हः, दीप ज्योति जनार्दन,    दीप हरतु मे पापं, दीपम ज्योति नमः स्तुते ||  जब हम शाम के समय घर में दीपक जलाते है तो दीपक के लिए इस प्रकार प्रार्थना करते है ------  शुभम करोति कल्याणम, आरोग्यम धन सम्पदा |   शत्रु बुद्धि विनाशाय द...

सुंदरकांड श्लोक - भाग १, तुलसीकृत श्री रामचरितमानस, पञ्चम सोपान

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                                                           ॐ श्री गणेशाय नमः    सुंदरकांड   पञ्चम सोपान        श्लोक   शान्तं शाश्वतं प्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं  ब्रम्हाशम्भूफणीन्द्रसेव्यमनीशं वेदांतवेद्यं विभुं |  रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं  वन्देSहम् करुणाकरं रघुवरं भुपालचूड़ामणिम || शांत, सनातन[जिसका आदि - अंत नहीं है] ,अप्रमेय [जिसका प्रमाण नहीं है], निष्पाप [बिना पाप का], परमशान्ति देनेवाला, ब्रम्हा, शम्भू और शेषजी के द्वारा हर वक़्त ध्यान किये जाने वाला, वेदांत  [ब्रम्हविद्या] के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले समस्त पापों को हरनेवाले, करुणाकी खान रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलानेवाले जगदीश्वर की मैं वंदना करती  हूँ |   नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेSस्मदीये  सत...

मैथिलि विवाह गीत | Vivah geet

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    मैथिलि विवाह गीत    मंगल आज जनकपुर, अति मनभावन हे |  आज मंगल दूल्हा - दुल्हिन, परम सुहावन हे |  आहे मंगल बाजन बाजै, सखी सब मंगल हे |  आहे गावथी मंगल गीत, जनक घर मंगल हे |  आहे देवगन फूल बरसावथी, सुर सब मंगल हे |  आहे सियाजी के आजु छन विवाह, जनक घर मंगल हे |  आहे मंगल श्री राम दूल्हा सिया भेली दुल्हिन हे |  आहे मिथिला आजु सुमंगल, घर - घर मंगल हे |  मंगल आज जनकपुर, अति मनभावन हे |

Pradosh Ashtakam | Shiva stuti

 प्रदोषस्तोत्राष्टकम् [Pradosh Ashtakam] सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रवीमि सारं ब्रबीम्युपनिषद्ददयं ब्रवीमि संसार मूल्बणमसारमवाप्य जन्तो: सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे, ये नाचितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये। एतत्कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्ते, जन्मजन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः॥ ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य, कुर्वन्त्यनन्यमनसांऽघ्रिसरोजपूजाम्‌ । नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र सौभाग्यसम्पदधिकास्त इहैव लोके ॥ कैलासशैवभुवने त्रिजगज्जनिनित्रीं गौरीं निवेश्य कनकाचितरत्नपीठे । नृत्यं विधातुमभिवांछति शूलपाणौ देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे॥ वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत्पद्मजस्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता । विष्णुः सान्द्रमृदंङवादनपयुर्देवाः समन्तात्स्थिताः, सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपातम्‌ ॥ गन्धर्वयक्षपतगोरग-सिद्ध-साध्व- विद्याधराम रवराप्सरसां गणश्च । येऽन्ये त्रिलोकनिकलयाः सहभूतवर्गाः प्राप्ते प्रदोष समये हरपार्श्र्वसंस्थाः ॥ अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः । तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीद...