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रामायण और रामचरित मानस के रचयिता कौनहै? रामायण और रामचरित मानस, Ramayan, Ramcharitmanas

श्री गणेशाय नमः ॐ नमः शिवाय जय माँ अम्बे भवानी रामायण के रचयिता कौनहै रामचरित मानस के रचयिता कौन है रामायण और रामचरित मानस    श्री गणेशाय नमः ॐ नमः शिवाय जय माँ अम्बे भवानी रामायण के रचयिता कौनहै?  रामचरित मानस के रचयिता कौन है?  रामायण को कब रचा गया रामायण को किसने रचा?  रामचरितमानस को किसने, कब और क्यों रचा?  रामायण  कोई नयी चीज नहीं है हिन्दू धर्म  के लिए |     रामायण  का मतलब क्या होता है? रामायण का मतलब होता है जहाँ राम बसते है, निवास करते है | दूसरा है  "रामचरित मानस"  जिसका नामकरण श्री शिव - शम्भू ने खुद अपने ह्रदय  मे  किया है |  "रामायण" के रचयिता महर्षि वाल्मीकि है |  " श्री रामचरित मानस" के रचयिता गोस्वामी तुलसीदासजी है |    रामायण   बहुत सारे लोगो के द्वारा कहा सुना जाता रहा है|  महर्षि वाल्मीकि  ने नारद मुनि से सुना और  ब्रह्मा जी   की कृपा से रामायण को रचा| चतुर्मुख ब्रम्हाजी ने महर्षि वाल्मीकि के मुख से कुछ श्...

SWARG, स्वर्ग, अच्छे कर्म, पुण्य, पाप

  स्वर्ग    अच्छे कर्म पुण्य  पाप   क्या हम में से किसी ने स्वर्ग देखा है?  बड़े - बुजुर्ग, हमारे धर्म ग्रन्थ सभी कहते है अच्छे कर्म करो स्वर्ग जाओगे |  "गीता" मे भी कहा गया है "जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान", तो इसका मतलब ये है जो कर्म हम यहाँ कर रहे है वही वापस मिलने वाला है |  स्वर्ग और नरक सब हम अपने कर्म से अपने ही आप - पास बनाते है |   हमारे धर्मग्रन्थ हमे अपने आस - पास स्वर्ग बनाने के राह दिखाते है हमे मार्ग दर्शन करते है | स्वर्ग और नरक में रहना तो अपने हाथों में है |  हमें तय करना है कि  "गीता" में  दिया गया "भगवान कृष्ण" का संदेश या "रामायण"  में  "श्री राम और लक्षमण" के कर्म  से हम अपने आस - पास किस तरह से स्वर्ग का निर्माण करें |   हम अपने मन को फालतू के बातों में उलझाने के बदले अच्छे कर्म में लगाएं |     अच्छे कर्म के लिए महर्षि वेद व्यासजी ने पुराणों के माध्यम से कहा है -  "अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |  परोपकारः पुण्य...

डूबने को अभिमान | प्रेरणादायक कहानी | Motivational story

  डूबने को अभिमान   प्रेरणादायक कहानी     एक मूर्तिकारऔर उसके बेटे की कहानी  एक   मूर्तिकार  था | वो बहुत अच्छी -अच्छी  मूर्तियाँ बनता था | उसकी  इस कला के लोग कायल थे | दूर-दूर से लोग उसके पास मूर्ति खरीदने आते और उसकी मूर्तियों को देखकर बहुत प्रभावित होते थे | उसकी मूर्ति की माँग  बहुत थी सो उसका बेटा उसकी मदद करता था |   मूर्तिकार बेटे को  जैसा सिखाते  बेटा मन लगाकर  सब सीखता, समझता और निखरता चला गया |  मूर्तिकार उसकी गलतियों को बतलाता और वो उसे  सुधारता | इसतरह से अपने पिता की इस हुनर को  बेटे  ने अपनी पूरी लगन से सीख लिया |  बेटा भी बहुत अच्छी मूर्ति बनाने लगा | मूर्तिकार से ज्यादा लोग अब उसके बेटे की मूर्ति की सराहना करते थे और खरीदते | मूर्तिकार को बहुत ख़ुशी होती थी | मूर्तिकार अब बूढ़ा हो चला था | उसके हाथ, काम में बारीकियां नहीं ला पातीं थीं | पर वो खुश था  कि  उसका बेटा काम को बखूबी अंजाम दे रहा है |  मूर्तिकार बेटा...

Beti Bachao Beti Padhao

 बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ आज कल  बेटियों के ऊपर ना जाने कितनी योजनाएं बनाई जा रही है ,ना जाने कितने तरह - तरह के गाने बन रहे है । चित्रपट भी बनाये जा रहे है। इन सब से क्या लगता है कुछ बदलाव आ जायेगा? मै तो कहती हूँ कुछ नहीं होने वाला है इनसब से। अगर बदलाव लाना है तो पहले सामाजिक कुरितियों को जड़ से खत्म करना होगा। एक साधारण घर - परिवार में जिस दिन बेटी जन्म लेती है उस दिन सन्नाटा छा जाता है। बल्कि  बेटी के होते ही  परिवार वाले माँ को ही कोसने लगते है।  अगर वैज्ञानिक तौर पर देखे तो माँ अधिक प्रभावशाली होती है तो बेटी का जन्म होता है। तो परेशानी कहा है बाप में या माँ में ? फिर माँ क्यों निशाने पर होती है। माँ को मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है। ये सिर्फ अनपढ़ समाज तक ही सिमित नहीं है मैंने पढ़े लिखे लोगो को भी  बेटे की आस में माँ को प्रताड़ित करते देखे है।  जिस दिन बेटी जन्म लेती है उसदिन से ही समझ लीजिये वो अपने माँ - बाप के लिए परेशानी ले कर पैदा होती है।बचपन से ही बेटियों को सम्हालकर,संस्कारऔर मर्यादा के साथ बड़ा किया जाता है |  ऐसी ...

Gurukul | गुरुकुल

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  गुरुकुल प्राचीन काल में हमारे देश भारत में गुरुकुल में बच्चे पढ़ा करते थे। वहाँ भी हर विषय कि पढ़ाई होती थी। शिक्षा जीवनशैली पर आधारित थी। वहाँ बच्चों का हर तरह से ,कह सकते है चहुतरफा - शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता था। उस वक़्त बच्चे पाँच वर्ष की उम्र में ही गुरुकुल जाते थे। उन्हें उसी उम्र से अपने सारे काम स्वयं  करने होते थे। सारे शिष्टाचार सीखा  दिये  जाते थे। ज्यादातर शिक्षा प्रायोगिक हुआ करती थी  ,इसकारण बच्चे गुरुकुल में बहुत  मन लगाकर अध्ययन करते थे । साथ ही उन्हें अपने पसंद के विषय चुनने में भी आसानी होती थी।बच्चे को अपने पसंद की शिक्षा पूरी करने की छूट थी।उनकी  परीक्षा  हर प्रकार से हुआ करती थी । जो बच्चा जिस लायक होता था उस विषय में वो अपने आप को निपुण बनाता था ।ऐसा कभी नहीं होता कि सारे बच्चे एक सामान बुद्धि वाले हों , हाँ पर इसतरह के विद्या अर्जन में बच्चे स्वाबलंबी और संस्कारी जरूर बन जाते थे। उनके माँ बाप को आज के माँ-बाप की तरह पीछे-पीछे चलना नहीं पड़ता था।कितने वीर ,पराक्रमी और विदुषी हुआ...

Vishwas, Pauranik katha | Bhagwan Vishnu aur unke bhakt

    विश्वास        नारद मुनि पृथ्वीलोक और परलोक की भ्रमण हमेशा करते रहते थे । एक बार नारद मुनि पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रहे थे तो उन्होंने देखा की एक इंसान इमली के पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या कर रहा था। नारद मुनि उत्सुकतावश उसके पास पहुँचे और उसे पूछा कि तुम क्या कर रहे हो? तो उस इंसान ने कहा कि मैं विष्णु भगवन के दर्शन पाने हेतु तपस्या कर रहा हूँ।  नारद मुनि ने पूछा -क्या तुम्हे विश्वास है की वो तुम्हे दर्शन देगें? तो उसने कहा-हाँ पूरा विश्वास है वो मुझे दर्शन जरूर देंगे।  तो नारद मुनि ने मन ही मन सोचा, ये कोई पागल है और उससे पूछा - अच्छा बता वे तुझे कब दर्शन देंगे? तो उसने कहा ये आप से बेहतर कौन बता सकता है।आप तो हर समय भगवान के पास जाते रहते है, तो जरा पूछ लीजियेगा की वो मुझे कब दर्शन देंगे। ये सुनकर नारद मुनि वहाँ से चले गए।  एक दिन जब वे स्वर्गलोक में विष्णु भगवन से मिले तो बात - चित के दौरान नारद मुनि को पृथ्वीलोक का वो तपस्वी याद आया। नारद मुनि ने कहा -  भगवान  मैंने पृथ्वीलोक में एक इन्सान को इमली के पेड़ के...

पति -पत्नी के संबंध / Pati Patni Ke Sambandh

                                                                पति -पत्नी के संबंध                                     "दो हृदय मिले दो फूल खिले ,दो सपनो ने  श्रृंगार किया ,                                 दो दूर देश के पथिकों ने संग -संग चलना स्वीकार किया ।"  इतना सुंदर उद्धरण अक्सर शादी के कार्ड में पढ़ने को मिल जाता है और ये  बिल्कुल सही भी है । कोई नहीं जानता किसके संग किसके जीवन की डोर बंधी है । जब दो हृदय मिलते है तो दोनों के बीच स्नेह बढ़ता है फिर विश्वास बढ़ता है। इसी विश्वास और स्नेह  के बल पर दो अलग- अलग माहौल और परिवार से आए युवक और युवती एकदूसरे के साथ पूरा जीवन कदम से कदम मिलाकर चलना स्वीकार क...

Betiyan | बेटियां | Betiyaan

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 बेटियां  बेटियां बोझ नहीं सौभाग्य होतीं है |  बेटियां दो कुल की मर्यादा होतीं है |   घर - आँगन की  आन-  बान और शान  होतीं है बेटियां | जब एक औरत गर्भवती होती है तो आने वाली संतान को लेकर सिर्फ खुश रहती है। उसे बेटी या बेटा किसी से शिकायत नहीं होता। वो तो बस एक स्वस्थ बच्चे को इस दुनिया में लाने के प्रयत्न में लगी रहती है। ये बेटा- बेटी जैसे शब्द हमारे घर या आस - पास के माहौल का नतीजा है।  लोगो को बेटियां अच्छी नहीं लगती  ऐसी बात नहीं है  । बात तो  ऐसी  है कि इन्हें कितना भी पढ़ाओ - लिखाओ इन्हें तो दूसरे घर जाना है। जब तक माँ बाप के साथ होती है उसके पीछे ही रहना पड़ता है। बेटियों की वजह से जिम्मेदारियां ज्यादा बढ़ जाती है।  जब वो   विदा  होतीं  है तो दहेज में अपने पिता की सारी जीवन की कमाई बटोर ले जाती है और बस इन्हीं कारणों से बेटियाँ भारी बोझ होती है। यही वो वजह है जिसके कारण लड़कियों को जन्म लेते ही माँ और बेटी दोनों पर कहर टूट जाती है और इस नाजुक स...

Parwarish

परवरिश                                                                                                                                                        दोस्तों ,  वैसे तो हम सब जानते है की जब माँ संतान को जन्म देती है  तो उसकी एक ज़िम्मेदारी शुरु हो जाती है- अपने बच्चे की परवरिश की । परन्तु , बच्चे की परवरिश  वास्तव मे माँ के गर्भ  में  ही प्रारम्भ हो जाती है। अगर माँ चाहे तो अपने मन मे सदा अपने बच्चे के प्रति अच्छे विचार रखे, हमेशा अच्छा सोचे,  तो बच्चा गर्भ से ही संस्कारी होता है । ये महाभारत में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के बारे में भी कहा जाता है । वो...

TV Dekhna Band Kar Diya Jai

क्या  हो अगर घर में  टीवी   देखना बंद कर दिया जाए? दोस्तों , आप यकिन नहीं  करेंगे  आप कितनी सुंदर, सुखद  जीवन जीने लगेंगे। हाँ ,  मैं आप को अपने अनुभव के आधार पर कहती हूँ,  आप के पास  भरपूर  वक्त  होगा। फिर  जी लें  अपनी जिंदगी  जी  भर के। अपने आप के साथ, अपने  परिवार के  साथ । समाज के  साथ । आप से कभी  कोई यह  शिकायत नहीं  करेगा कि  आपके पास उनके लिए वक्त नहीं और न ही आपको किसी  से यह  शिकायत  होगी।  आप अपने बच्चों के साथ पूरा  समय बिता सकेंगे , उनकी बातों  को सुनकर उन्हें सही गलत से परिचित करा सकेंगे।आप  से अच्छा दोस्त तो उनका कोई  हो ही  नहीं  सकता ।जब  आप उनके साथ  अपना समय  बिताने लगेंगे  तो उन्हें अपनी बातों  को  आपसे कहने में ,  पूछने में झिझक नहीं  होगी  ओर आप अपने अनुभव  से उनकी जीवन सँवारने में  लग ...